दर्शन तत्त्व रत्नाकर | Darshan Tattv Ratnakar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
177
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ दर्शन सत्त्व रल्लाकर
रण्जु में स्पका ज्ञान होने लग जात! है, उसी प्रकार सत्य स्वरूप
जिस 'झात्मा मे यह सारा संसार भासित हो रहा है अर्थात्
वास्तव झात्म-ज्ञान महीं रददने के कारण ही सद्रप आात्मा में
उच्चावयरूपसे यह सारा ससार सत्य मालूम पड़ता है और
रज्जु के वास्तव ज्ञान हो जाने पर जिस प्रकार वहां सर्प की
प्रतीति सर्वथा बिनष्ट दो जाती है, उसी प्रकार जिस आत्मा के
चास्तव ज्ञान हो जाने पर यह सारा संसार सदैव के लिये विलुप्त
हो जाता है । इस ससार में मल--विक्षेप दोप से रहित विशुद्ध
अन्त.करण वाले जिज्ञासुगण लिस श्मात्म-सतर्व को निरन्तर
सोजते रहते हैं । आनन्द-राशि, चैतन्यस्वरूप उसी सद्रप
श्ात्म-तर्व को दम शतशः नमरकार करते हैं ।
चार्वाकः सत्ततं मलीमसमना जेनः पथोन्यकुकुतः
येडन्येपंडितमानिनो उधनितरांवौद्धाशचतुःसंख्यकाः
सर्वेतेकिलनास्तिकाहिशुतशोयुक्तयादिशि: खंडिता:
झानीताःपुनरास्तिका:सतिपथिस्वध्यात्सशास्रडुहदः*
सदैव पाप की सना करने वाला चार्थाक और जैन,
जो वेद के सत्पथ से वाहर हो यया है तथा श्पने को
महान् परिडत मानने वाले सौगान्तिक, बेभापिक, योगाचार,
माध्यमिक ये जो चार प्रकार के वौद्ध हैं, वें सबके सच जेट
थथ
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