उन्नीसवीं शताब्दी के निबन्ध साहित्य में लोक जागरण का स्वरूप | Unnisavi Satabdi Ke Nibandh Sahity Men Lok Jagaran Ka Swaroop

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Unnisavi Satabdi Ke Nibandh Sahity Men Lok Jagaran Ka Swaroop  by रामचन्द्र - Ramchandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विकल्प के रूप में उभरना ही लोकजागरण है। चूँकि लोकजागरण जन-सामान्य का समग्र जागरण है, अत यह जनसामान्य की भाषा में ही सम्भव है, इसीलिए लोकजागरण का सबसे सशक्त माध्यम हैं - लोकभाषाएं। लोकजागरण अपनी परिधि में जन सामान्य के सामाजिक - धार्मिक, साहित्यिक सांस्कृतिक जागरण को समेटे हुए है। विभिन्‍न युगों में लोकजागरण का स्वरूप बदलता रहा है। यदि भवक्तिकालीन लोकजागरण में आध्यत्मिकता, आस्था और विश्वास का प्राघान्य था तो उननीसर्वी शताब्दी के लोकजागरण में तर्क, बुद्धिवाद और विज्ञानवाद का। इन दोनों चरणों का लक्ष्य जन सामान्य को समस्त सामाजिक- धार्मिक एवं आर्थिक्र शोषण एवं रूढ़ियों से मुक्त कर जाति-धर्म से परे एक समरस समाज की स्थापना करना था और इसी रूप में लोकजागरण के ये दोनों चरण आपस में जुड़े हुए हैं। डॉ0 राम विलास शर्मा के अनुसार ” भारतेन्दु हरिश्चन्द्र से लेकर सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला' तक का साहित्य उसी लोकजागरण का अगला विकास है।”' लिन कक वि फायर 'पराकााकाक' दनददलाण्कर, पारस पैदयकरिनिय पदधरद पलपल पैदरदालकंल पालक पाकर पयूधरंपिदा सार्िकरधय दाल पन्ना नफियरस'पि्काायक (सदा नकद पार नयाकेनना पननकन पन्ना लिमालगानवाानाणयगाधयााावााााााााााधाा कक ।- लोक जागरण और हिन्दी साहित्य: संपा0ं डा0 राम विलास शर्मा, पृष्ठ 13




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