नारद भक्तिसूत्र | Narad Bhaktisutra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दर च्युत्पत्तिगत कर ह--कलह-सूप्टि के द्वारा जो मनुप्य-मनुप्य के बीच भेद उत्पन्न करते हैं (नार नरनमूह कलहेन यति ख्वण्डयति इति नारद.) ।. फिल्तु, उनके डारा से सब विरोधमूलक घटनाओं का विश्लेषण करने पर उनकी चैप्टा का मम्भीरतर उद्देश्य देखने में आता हूं । स्रप्टा की विश्वलीलल के सहायक्त के रूप में वे द्विभवन का विचरण करने निकलते है! सृष्टि का जर्थ ही हुआ चँचित्य-सत्‌ और असत्‌ का इन्द्र । इन इ्टों के बीच, परि- शाम में सत्‌ू की विजय दिखाना ही उनकी सारी चेप्टाओं का ऐसा प्रदीत होता है । कई वार दे भली भांति विरोध उत्पन्न कर नसततु की समाप्ति के लिए, बिना के लिए । श्री रामकृप्णदेव कहते थे, बड़ा होने पर तभी उसके ऊपर मनसा वृक्ष का दूध देना होता हैँ । “फोड़ा के पकने पर ही डाक्टर नस्तर लगाता हू ।”. समय नहीं लाने तक कप्ट सहते जाना होता है--परिणाम में कल्याण के लिए । समुद्रमंथन के परिणामस्वरूप लाभ के सारे अंश देवताओं के हिस्से पड़ा था । सथापि देवासुर में भयंकर युद्ध चलता रहा--देवताओं ने असच्य असुरा का वध किया । इसी अवस्था मे देवपि नारद ने समरक्षेत्र में उपस्थित होकर देवताशों को सम्वोधित्त कर कहा, 'आापलोगों ने तो अमृत पाया है, लक्ष्मी देवी को प्राप्त किया हू । तब जीर किस वस्तु के लिए युद्ध ?” उनके उपदेग से देवगण असुर-विनाग के कम से विरत हुए । बसुदेव के साथ देवकी के विवाह के वाद कंस ने दववाणी सुनी थी, “'देवकी के गर्भ से उत्पन्न आठवी सन्तान के के हाथों तुम्हारी मृत्यु होगी मृत्यु हे बचने के लिए उन्होंने वहन और वहनोई को कारामार में डाल दिया । नियम बना कि जन्म लेने के उपरान्त देवक्ी की प्रत्येक सन्तान का कंस वध करेंगे प्रथम सन्तान को लाकर वसुदेव ने के हाथ में दिया त्तत कतत ने कहा, 'देवकी के आठवें गर्भ की सन्तान के हाथों मेरो मृत्यु निर्धारित शियु को तुम ले जाओ ।'. इसी समय नारद ने वहाँ उपस्थित होकर कहा, “अरे राजा कंस, तुम यह क्या करते हो ?. ब्रजपुरी के सारे सोप-गोपियों और चुष्णिवंश के वसुदेव आदि सबका देवांग से जन्म हुआ है । तुम्हारी चहुन देवकी और तुम्हारे अनूगत जात्मीयजन, वन्धु-वान्धव ये सभी देवता हैं” च्




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