दो निश भोजन कथा | Do Nish Bhojan Katha

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Do Nish Bhojan Katha by भारामल्ल - Bharamall

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बढ़ी निश भोजन त्याग कधा भाषा । ६9 जितने जोगी जोपावों । तिनको जु बांधिकर छावो। महराज हुकमते सोईं । चाले हुण दीन कोई ।५१। नर नारि सभाके सब ही। मन में सुविचारें तबही । काहे को जोगी बुढावे । तिन पे क्या न्याव कराबे ।५२। जितने नगरी में पाये । तिनको वह बांध कर छाथे। पाये बन खण्डन माहीं । तिनकी मुतके जु चढ़ाई ।५३। अरुपाये गुफनि में सोइ । जोंगी एक बचो नहीं कोई । अब भुप कचहरी उाये । दपति के पायन गिराये (ऐ४। महाराजने सूखी गडाइ। सो तो दरबार के माई । तब भुप कही पुनि सोई । जोंगी बात सुनो सब्र कोई 1५५ जैसे यह बात मई है । हमने सुन सर्व उड़ है। ताते ज्यूं की त्यूं ही कहीजे। नहीं सूठी देख यह छीजे ।५६। सबको यम छॉक पठाऊं। जोगी एक जी नाहीं बचाऊं॥ तब जोगी एक उर आनो । यह भुपति सब ही जानो ॥ ९७ ॥ जो करू छिपाव जु कोई । निश्चय मुझमरणों होई ॥ भूपति सों तब कर जोरे । महाराज सुनो बच सोरे ॥ ५८ ॥ महाराज अरज सुनि छोजे । मम अरजी चित में दीजे ॥ चूक माफ हमारी होई । खबरे सुनियो अब सोई ॥ ५९॥ ॥ चौपाई ॥ मोपे गयो सु यह जो कमार । कहत भयो तब ही निरधार ॥ बाय तेल के कारण जान । सं एक दीजे सुझे आन ॥ ६० ॥ मोकूं दिये यह पंच दीनार। सो तुम आगे धरे यह सार ॥ मेंने सर्प दियो अब सोय । में कछू फिर जानो नहीं कोय॥ ६१॥ इतनी सुन कर सब नर नार। अचरज रूप भये अधिकार ॥।




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