दोसौ बावन वैष्णवन की वार्ता | Dosau Bavan Vaishnav Ki Varta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आमुख राष्ट्रभाषा हिन्दी साहित्य के निर्माण में श्रीवछभाचाय महाप्रडु द्वार ग्रवर्तित एवं गोस्वामि श्रीविद्ठेशप्रशुचरण दारा परिपुर शुद्धादेत पुष्टिमागें सम्प्र- दाय एक विशिष्ट स्थान रखता है। पथ निर्माण की परम्परा में जहां अट्छाप के महानुसाव समथ कवियों का नव्य दिव्य सौरवपूर्ण प्रतिष्ठान प्राप्त है, वहां गद्य निर्माण की परम्परा में भी चार्ताएँ अपना अनिवंचनीय अश्रु्ण अधिकार बनाये हुए हैं। साहित्यिक अन्वेषक, समाठोचक और सुधीवर विद्वान इस वस्तुस्थिति को स्वकीय चष्टिकोण से न तो ओझर कर ही पाये हैं, न कर सकते हैं ! हिन्दी जगत के चार्ता-साहित्य में चौग़ती वेष्णय और दोसौ चावन चेष्णवों की वार्ताएँ अपनी विशेष सहत्ता के कारण अध्ययन, अन्वेपण और निर्णय में उदास उपयोगिता का परिद्शन कराती हुई एक ऐसी दिशा का सचन कराती हैं, जो उदयान्पुखी एवं विविध चिज्ञानों की सम्मीर निधि हैं । प्रस्तुत अक्षय निधि के सश्चय एवं परिदशन का शरय जहां श्रीसोकुलनाथजी को दिया जा सकता है, वहां उसके वर्गीकरण और सज्डीकरण का श्रेय श्रीहरिरायजी महा- जुमाव को समधिगत होता है। ये दोनों ही हिन्दी गय साहित्य के उदात्त उत्तम हैं । यद्यपि साहित्य-प्रकाशन में इन वार्ताओं के मुद्रण की पूर्ति आज से लगभग ६०-७० वे पूर्व ही की जा चुकी थी, परतु इस में मौछिकता के दृष्टिकोण को न्यून और व्यावसायिक दृष्टिकोण को विशेष प्रश्न दिया गया था। वार्ता के इस प्रकाशन ने साहित्प-संसार के समध अपकारोपकार की कुछ ऐसी उलझन उपस्थित कर दी, जिसका विवेचन यहां अस्थाने है । फिर भी “अकरणा- न्मन्दकरण श्रेय: के अनुसार यह तो स्पष्ट ही है कि एक वार अग्रकाशित्त साहित्य मुद्रण द्वारा प्रकाशन में आया । अब उसके द्वारा तथ्यातथ्य निर्णय और वास्तविक स्वरूप परिदर्शन की उत्कण्ठा का समाधान किया जा सकता है 1 उक्त उमयविध चार्ताओं के रचनाकार, रचनाकाल एवं स्चनाशिली के सम्बन्ध में साहित्य-जगत में समय समय पर अनेक व्यक्तिगत अभिग्रायों का प्रर्कोट छुआ हूँ; जिनमें कितने ही उपादेय अजुपादेय, खण्डनीय और स्वीकरणीय हैं । इन सच में कांकोडीएय वर्ग के कुछ मोटे मोटे निर्धारण एक विशिष्ट गम्भी- रता को ढेकर आगे दढ़े हैं। जो हिन्दीसाहित्य जगत की एक चिंगोप जिज्नासा- पूर्ति के साधन हैं । प्रस्तुत वर्ग में , विद्याविभाग कांक्ररोली के अध्यक्ष, प्रस्तुत पंक्तियों का छेखक और वार्ता साहित्य के विशेषज्ञ परीख दारकादासजी एवं




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