परिचायिका | parchyika

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parchyika  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छ १९.' श्री रामवल्लभ सोमानी : कछवाहों का प्रारम्भिक इतिहास (शोध पत्रिका : १७/५४ : पृ. ८१); २०. छाँ. मनोहर शर्मा : मरवण (मरूवाणी : ७/५ : पृ. शन ७), कुरंजा और मरवण (वरदा : २/१)- एक अन्य मरवण (वरदा : ७/१), २१. श्री शंभुसिह मनोहर : कल्लोल (मरूभारती : १६/४) आदि 1 २२. सुश्री सीता अग्रवाल : ढोला मारू एक राजस्थानी लोक-गीत : (विशाल भारत : जुलाई. ५२), २३. श्री दीनदयाल ओका : ढोला मारू में प्रकृति चित्रण (प्रेरणा : /२), २४. डॉ. भगवतीलाल शर्मा : ढोला मारू की कवि-समस्या (सप्तसिघु : जुलाई ६८)» ढोला सारू का रचना-काल (मधुमती : फरवरी ६४ )५ ढोला मारू की लोकप्रियता (वरदा : १०/२) । ढोला मारू की कथानक रूढियाँ (मरूभारती : १४१) इसके अतिरिदत “ढोला समारू' पर राजस्थानी साहित्य से संबंधित ग्र थों, प्रेमाख्थान-परक अध्ययनों, इतर हिन्दी साहित्य के ग्रंथों, इतिहास ग्रस्थों, गुजराती ग्रन्थों, कोपों और खोज विवरण तथा सुचियों आदि में भी सूचनात्मक आलेख प्रस्तुत हुए हैं । इस प्रकार यह 'ढोला मारू' पर विभिन्‍न हष्टिकोण लिये हुये कार्यों का संक्षिप्त सर्वक्षण है । उपरोक्त विवेचित कायें के परिशीलन के पश्चातु यह धारणा प्रबुद्ध हो उठती है कि 'ढोला मारू' पर अव तक किया गया कार्य श्र खला-बद्ध न होकर विखराव लिये हुये तथा सम्यक्‌ न होकर संक्षिप्त है। “ढोला मारू' पर स्वततन्त्र- अध्ययन तो कम ही उपलब्ध हूं और जो हैं वे संपादक-त्रय ट्वारा संपादित ग्रन्थ पर ही आघारित । हस्तलिखित-प्रतियों का अध्ययन तो हुआ ही नहीं हैं । पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित आलोचनात्मक स्फुट लेखों में झ्राकार-सीमा के कारण इसके साथ पुरणंतया न्याय नहीं हो सका है । 'ढोला मारू' के स्वरूप को समभने में ये प्रयत्न सक्षम नहीं कहे जा सकते । इस तरह जो बिवेचितं कार्य है उसे स्तरीय स्वरूप देना एवं अछूते पक्षों को, जिनपर पर्याप्त विवेचन नहीं हुआ है, छूकर इस ललित काव्य का सांगोपांग अध्ययन-आलोचन करके उस अभाव की पूरति करना ही यहाँ मेरा असीष्ट रहा है । (इ) शोध-प्रबन्ध की सीसा : प्रस्तुत शोव-विषय का प्रत्यक्ष सम्बन्च एक काव्य रचना के साहित्यिक अचुशीलन से है। साहित्य को देश और काल संजीवन प्रदान करते हैं । अतः साहित्यिक-परिवेश का संस्कृति और इतिहास से पूर्ण सम्बन्च है। इस प्रकार प्रस्तुत शोघ-प्रवन्च में “ढोला




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