सप्त सरोज | Sapat Saroj
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
102
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रे.
३५
बुल्हगा तव उोग मुझे कया कहेंगे ? मेरे दफ्तरके का मेरी हंसी
उदायगे और मुस्कुराते ६ कटाक्षोसि-गेरी और देखेंगे । उन
कदाक्ष छुरने भी ज्यादा देज होंगे । उस समय क कया करूंगा
गोदावरने अपने गॉव्सें जाकर इस कांयको आरम्म कर दिया
आर इसे निर्पिप्न रमात भी कर डाजा । नयी बहू धरने सा गई।
उस समय गादावरी ऐसी प्रसन्न माउम हुई मानों वह बेटेका व्याह कर
छाई हो। बह सब साती वर्जाती रददी । उने कया मादम या किं शीघ्र द्दी
इस गानेके यदले रोना पड़ेगा !
दे
कई सास बीत गये । गोदावरी अपनी सोतपर इस तरह शासन
गरती थी मानों चदद उसकी सास हो, तथापि वदद यह बात कभी न भूलती
थी वि मैं चास्तवषें उसकी रास नददी हूँ । उधर सोमतीकों भी अपनी
पथिहिवा पूरा ख्याल रहता था ! इसी कारण सासके शासनकी तरह
सटोर गे रहतेपर भी संदावरीका दयासन उसे अप्रिय प्रतीत होता था !
उसे अपनी छोटी मोटी जरूरतोके छिये भी गोदावरीसे कहते सकोच
होता था 1
व दिनो दाद गोदावरीके स्वभावमें एक विशेष परिवत्त न दिखाई
देने लगा । वह परिडतजीकों घरमें आते जाते चढ़ी तीव्र दृष्टिसे देग्वने
रुयी । उसवी स्वाभाविक राम्मीरता अब मानों लोपसी हो गई, जरासी
दात भी उसके पेटमे नहीं पंचती । जब परिडतजों दफ्तरसे आते तंत्र
गोदावरी उनके पाठ घरों वें 1 गोमतीका दत्तात्त सुनाया करती । इस
दु्ात-कथन्मे दहुतर्णा ऐसी छोटी मोटी यातें भी हंती थीं कि जब कथा
समाप्त हद, तर परिडतजीके दृदयसे वोझ-सा उतर जाता | गोदावरी
दर इतनी सुटुमापिणी हो गई थी, इसका कारण समझना मु
. । शायद जर दह्ह सोमनीवि डरती थी । उसके सौन्दर्यसे, उसके
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