सप्त सरोज | Sapat Saroj

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Sapat Saroj by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रे. ३५ बुल्हगा तव उोग मुझे कया कहेंगे ? मेरे दफ्तरके का मेरी हंसी उदायगे और मुस्कुराते ६ कटाक्षोसि-गेरी और देखेंगे । उन कदाक्ष छुरने भी ज्यादा देज होंगे । उस समय क कया करूंगा गोदावरने अपने गॉव्सें जाकर इस कांयको आरम्म कर दिया आर इसे निर्पिप्न रमात भी कर डाजा । नयी बहू धरने सा गई। उस समय गादावरी ऐसी प्रसन्न माउम हुई मानों वह बेटेका व्याह कर छाई हो। बह सब साती वर्जाती रददी । उने कया मादम या किं शीघ्र द्दी इस गानेके यदले रोना पड़ेगा ! दे कई सास बीत गये । गोदावरी अपनी सोतपर इस तरह शासन गरती थी मानों चदद उसकी सास हो, तथापि वदद यह बात कभी न भूलती थी वि मैं चास्तवषें उसकी रास नददी हूँ । उधर सोमतीकों भी अपनी पथिहिवा पूरा ख्याल रहता था ! इसी कारण सासके शासनकी तरह सटोर गे रहतेपर भी संदावरीका दयासन उसे अप्रिय प्रतीत होता था ! उसे अपनी छोटी मोटी जरूरतोके छिये भी गोदावरीसे कहते सकोच होता था 1 व दिनो दाद गोदावरीके स्वभावमें एक विशेष परिवत्त न दिखाई देने लगा । वह परिडतजीकों घरमें आते जाते चढ़ी तीव्र दृष्टिसे देग्वने रुयी । उसवी स्वाभाविक राम्मीरता अब मानों लोपसी हो गई, जरासी दात भी उसके पेटमे नहीं पंचती । जब परिडतजों दफ्तरसे आते तंत्र गोदावरी उनके पाठ घरों वें 1 गोमतीका दत्तात्त सुनाया करती । इस दु्ात-कथन्मे दहुतर्णा ऐसी छोटी मोटी यातें भी हंती थीं कि जब कथा समाप्त हद, तर परिडतजीके दृदयसे वोझ-सा उतर जाता | गोदावरी दर इतनी सुटुमापिणी हो गई थी, इसका कारण समझना मु . । शायद जर दह्ह सोमनीवि डरती थी । उसके सौन्दर्यसे, उसके




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