कुमुद (उपन्यास ) | Kumudh (upanyash)

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Kumudh (upanyash) by राजेंद्र गुप्ता - Rajendra Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कुमुद ७ जिसके चबूनरे का एक कोना और ऊपर चढ़ने की सीढ़ियों भी टूट- #» 4 घ्प्ोर डः ५ रू फूट कर नीचे गिर गई थीं, ओर इधर-उधर कबाइ-कूड़े का ढेर लगा हुआ था। इसी 'मिन्न-सदन' नाम की पुरानी अट्टालिका के द्वार पर खड़ा होकर वह युवक धीरेन्द्र लाम के किसी व्यक्ति को पुकार रहा था। उस अट्टालिका का नाम 'मित्र-सदन' क्यों रक्खा गंया था ? कुछ खास सित्रों की सरडली वहाँ वैठ कर झपना मनोविनोद करती थी, अथवा मकान-मालिक के जाति-विशेष के थ्माधार पर उसका नाम . रक्‍्खा गया था; यह बात निश्चित रूप से नहीं कही जा सकती । चहाँ की बतंमान अवस्था देख कर, यही धारणा होती थी कि कुछ मनचले नवयुवक मित्रों की गुप्त बैठक होने के ही कारण उस मकान का नाम 'सित्रसदन” रख दिया गया था, नहीं तो क्या ऐसे सुन्दर नाम का सम्बन्ध उस टूटे-फूटे खण्डहर के साथ जोड़ते हुए वहाँ के मालिक को तनिक भी संकोच न होता ? . क तीन-चार चार पुकारने पर भी जब उस मकाने के भीतर से कोई उत्तर नहीं सिला, त्तो नह युवक स्वयं ही आगे बढ़ा । मकान के चारों आर कॉटेदार तारों का एक घेरा खिंचा हुआ था। उसी घेरे के बीच कि ५ ह पंगडरडी के ऊपर जल्दी-जल्दी पैर उठाता हुआ आगे बढ़ने लगा । जान पड़ता था, उसे दिन के समय भी वहाँ जाते हुए भय लग रहा था| ' ३ फ




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