भारत में लोक उद्योग | Bharat Me Lok Udhyog

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ | भारत में सोफ उद्योग जहाँ-जदाँ थे उद्योग स्थापित टूए ? वीं दे लोग विस्थापित हुए हैं तथा उनके जीविकोपार्जन में व्यवधान पहुँचा है । अत इन लोक उयोगों को उन क्षेत्रीय लोगों के पुनर्थपिन में सदायता के साय ही उनया विदास करना भी आवस्यक है । इन विशिष्ट क्षेत्रो में लोक उद्योगों में शिशा-प्रमार तथा स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने के साथ हो आसपास के क्षे थे में कृषि एव समाजोत्वान के कार्यक्रम भी चलाना प्रारम्भ विया है 1 निजी उद्योगपतियों के अनिर्दिति तया उनके लिए असम्भव क्षेत्र का विकास करना (10 12ल९ल०] पाए. तर्त& सवाल पिए्ताए पाधटुशाटाट्णा5 पाए एच] 01. एफ? )--यह सबंविदित है कि निजी उद्योग का प्रघान उद्देश्य लाभ है । ये उद्योगपति ऐसे उद्योगों को ही स्थापित करते है जिनमें उन्हें लाभ मिल सके । वे ऐसे व्यापारिक अथवा औद्योगिक क्षेत्र मे कभी भी विनियोजन तथा परिश्रम नहीं करते जिसमें उनके इस उद्देश्य की पति न हो । किन्तु किसी भी देश में बहुत-से क्षेप्र (उद्योग) है जिनमे लाभ मिलने (कम से कम प्रारम्भिक कुछ वर्षों तक) की सम्भावना नही ४, फिर भी देश के हित में उनका विकास आवश्यक है; जैसे सुदूर देहात में स्थित कुछ गाँवों में यातायात की व्यवस्था लाभप्रद नहीं हो सकती; किन्तु वहाँ की जनता के हित में यह सुविधा प्रदान करना आवश्यक है । ऐसी स्थिति में सरकार ही यह काम सावंजनिक क्षेत्र मे कर सकती है, न कि निजी उद्योगपति 1 निजी उद्योगपति प्रायः माँग (वर्तमान अथवा सम्भावित) की प्रति के लिए औद्योगिक अथवा व्यापारिक क्षेत्र मे आते है, रिनतु सरकार जनता की आवश्यकता की पूर्ति के लिए भी यह वार्य करती है । इसी प्रदार किसी भी देश में कुछ ऐसे कार्य भी हैं जो निजी उद्योगपत्तियों के लिए (उनके आधिक साधन तथा जोखिम सेने की क्षमता को ध्यान में रखते हुए) असम्भव हैं, निन्तु देश के हित में उनका विकास आवश्यक है; जैसे विशाल नदी घाटी योजनाएँ । शायद भारत मे यह कभी भी सम्भव न होता कि दामोदर घाटी तथा अन्य ऐसी योजनाएं निजी उद्योगपतियों द्वारा प्रारम्भ की जाती । इम्पीरियल बैक लॉफ इण्डिया के राप्ट्रीययरण के वाद सरकार ने उसे ग्रामीण क्षत्रो मे ४०० शाखाएँ खोलने का निर्देश दिया । इसी प्रकार राष्ट्रीयकृत १४ बैंकों को, राष्ट्रीयकरण के वाद, सरकार ने ' निर्देश दिया कि वे १,३०० नयी शाखाएँ खोलें जिनमें छपको थे सहायतार्थ ७५०६, शाताएँ ग्रामीण क्षेत्र मे हो । यह ऐसा कार्य है जो आधिक कारणों से निजी क्षेथ के बैक नहीं कर पाते 1 जाधन, पाकिस्तान तथा बुछ अन्य देशो में ऐसे क्षेत्री में सरकार निजी उद्योग पतियों की सक्तिप सहायता करती है । निजी उद्योग के अनिच्छित क्षेत्रों मे सरकारी विकास संस्थाओं (51216 9८४ट०]शाटाए एटणलंवड शत उाउंडतांगि एल'शंग- काहाए (एलाफठातपिणा 5) द्वारा उपक्रम स्पापित किये जाते हें किन्तु दुछ वर्षों बाद जब वे लाभ देने लगते हैं तब सरकार उन्हें निजी उद्योगपतियों के हाथ सौप देती है । विन्तु भारत सरवार की क्रमश. समाजवादी सीति के कारण यहाँ के लिए यह सम्भव नहीं है।




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