मुमुक्षुवृतान्त | Mumukshavratant
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.86 MB
कुल पष्ठ :
246
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about हरि दामोदर वेलंकर - Hari Damodar Velankar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ अध्याय ।] ममलद्त्तान्त । ९१
मेरा निपट ही प्यारा सित्र भ्रकस्मात मर गया जिससे
मेरा चित्त छिद गया । मे इस शआपद का निरखते हो
मनुष्य को दशा का भली भाति सोच करने लगा और
होते हाते मफ के शपनी ददशा का सान दुद्आा । और
तब मे इंश्वर की सडिसा श्रार उस के गया का ध्यान
करने लगा । इन्हीं बातां का बिचार करते २ सफ पर
यह प्रगट हुआ कि जिस को शक्ति ओर बद्धि ऐसी है
कि उस ने स्वग और एथिवी के बनाया निश्चय वह
! निदाप ओर परिपूणण अत्यन्त पवित्र न्यायी ज्ञानी दया-
न वान प्रयेप्रतापी सवज्ञ घम्मेसय और सवेव्यापक हैगा ।
आर दइंश्वर के इन गणा का बिचार करते २ में श्रपनो
श्ररपवित्रता शरीर खष्टता के भली भांति देखने श्रोर इसी
कारण मे श्रत्यन्त दुःख के साथ यह कहके रेइने लगा कि
| मे जा अपवित्र ओर चिनेोना और जन्म कसें से श्राज्ञा-
भंगी और इंश्वर से भी '्पने के श्रत्यन्त प्रेम करनेवाला
। हूं क्याकर श्रपने दंश्वर के साम्हने जाने के साहस कर ।
स््ार जब सेरो सत्य आवेगी ओर मे इस अस्थिर शरोर
क्षा द्ाडंगा ता निश्चय भक्कते उस के ससोप जाना पड़ेगा ।
दब जा से उस समय से पतले अपने पाए के प्राय-
खित्त के लिये का युक्ति ओर सत्य मुक्तिदाता न
ठचद्दराऊं और अपने तढे पवित्र और निर्मल न करूं ते
निश्नय है कि मक का सदा नरक में रहने को आज्ञा
'गी ।
तब मे ने देखा कि संसारी फिर अत्यन्त रे रेके
घ्राह मारने लगा । उस ज्लात्मण ने यह कहके उसे भरासा
दिया कि हे मेरे बेटे मन मे टाढस बाघ तेरो दशा ओर
| की दशा से बुरी नहीं क्याकि बत्तमान की जितनी
अरघमता और अ पवित्रता है सब दस शरोर से संबन्ध रखती
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