त्रिकोण में उभरती आधुनिक संवेदना | Trikoan Main Ubhrti Adhunik Samvedhana

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Trikoan Main Ubhrti Adhunik Samvedhana by वीना गौतम - Veena Gautamसुरेश गौतम - Suresh Gautam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रचना दृष्टि श्र स्थितियों से उभर के उपरान्त युद्ध के अनुभव से दुखी, पीड़ित एवं ब्यथितत है। यह द्रेष्टा ऋषि और कोई नहीं कि ही है । ऐसा प्रतीस होता है कि कहीं एकान्त श्रेश में थिचार- मन होकर बहू युद्धोलरकालीन परिस्थितियों एवं वातावरण का तटस्थ मूल्यांकन कर रहा है और यह कबि-मानस युद्ध का तटस्य एवं सही मूल्यांकन कर सफेंगा--इसका विध्वास पाठक अयवा दर्शक की नाटक के आरम्भ में ही हो जाता हैं । कबिता की लें जहाँ भुवकाल के यथार्थ को प्रस्तुत करती है वहीं आधुनिक काल के यथार्थ को भी । इन पश्तियों में जहाँ सहाभारत-युद्ध की भयानक अनुभूति चित्रित है वहीं आधुनिक युद्धों का मावव-भयप्रद जनविनाशक प्रलयंका री रूप भी उसके साथ जुड़ा हुआ है । इस प्रकार 'अस्घायुग ' में महाभारत-कंथा के उस मर्भविन्दु का चुनाव किया गया है जो द्वितीय महायुद्धोत्तर मानवीय-नियति, सानवीय-संस्कृति और सानवीय-भाग्य से मेल खाता हैं । जिस प्रकार महाभारत-युद्ध के बाद भय, कुण्ठा, निराशा, पस्ती एवं पराजय तथा निरथेकता का वातावरण छा गया था; ठीक वह्टी स्थिति द्वितीय युद्ध के लोमहूर्घक विध्वंस के आधुनिक युग की थी । आधुनिक मानव भी कुण्ठ, भय, संशय, सामूहिक गृत्यु-भय, निराशा एवं निर्थ॑ंकता से ग्रस्त है । इन्हीं मूत्यों और मर्यादाओं का अत्वेपण *अन्धाधुग' की मौलिक समस्या है । कुण्ठावादी मनोबूत्तियों, बिक्ृतियों से घिररकर आज का मानव पशु के सप्तान अपना जीवन थाने वार अस्तित्वहीन नहीं होना चाहता । उसे अपने भस्तित्व से प्रगाढ़ मोह है। बहू उस अदश एवं दयनीय स्थिति से मुक्ति के लिए उदपटाता है, मटकता है और अन्वेरे में इधर-सवर द्ाथ-पाँव मारता है कि कहीं को ई प्रकाश की क्रिरण मिल जाए। इसी प्रकार आधुनिक-युगबोध के साथ महाभारत-कथा के उस म्मंधिन्दु का सामझ्जस्य दिखाया जा सकता है। और, तब 'अन्धायुग' की कथा पौराशिक कथा मात्र नहीं, प्रतीक वन जाती है । कथा के जितमे भी सर्मविर्टु हैं, वे जहाँ एक और महाभारतकाधीन सत्य को उद्दबाटित करते हैं बहीं दूसरी ओर आधुनिक युगबोध को भी ब्यंजिंत करते हैं । इस काव्य-नाटक में श्रीकृष्ण को भी नयो दुष्टि से परखा गया है । जो कृष्ण अब तक कषियों एवं कलाकारों के द्वारा परंत्रह्मा के रूप में चिरधित होते आए हैं तथा जिन्हें केवल मर्यादित तथा सत्य के आग्रही के रूप में ही चित्रित किया जाता रहा है, उस कुष्ण को 'अन्पायुग' में एक नयी भूमिका लिसी है । 'अन्वायुग' का कृष्ण केवल प्रभु अथवा परंज्रहमा ही नही हैं बशिंक देवत्व एवं दानवत्व की सधि-रेखा पर खड़ा वह आधुनिक जटिल मनुष्य भी है जो परिष्वितियों से प्रेश्ति होकर सत्य की रक्षा करते हैं तो सत्य का त्याग भी, मर्यादा का बहुम करते है तो अमर्थादा का ग्रहण भी । दस प्रकार पहली बार कृष्ण को समर्यादित रूप में चिधित किया गया है और तव कृष्ण का व्यक्तित्व उस जटिल मनुष्य के व्यक्तित्व के रूप में उभरता हूँ जो पाप-पुण्य, सत्य-असत्य, मर्थादा-अमर्यादा के झूले पर घड़ी के पेंडुलम की भाँति सदा दोलायमान रहता है । “अन्धायुग' के कृष्ण सत्य-असत्य, मर्यादा-अमर्यादा के एकसान निर्णायक नहीं है * इनका निर्णय संशयप्रस्त मनुष्य कर




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