ईश्वरचन्द्र विद्यासागर का जीवन चरित | Ishwarchandra Vidhyasagar Ka Jivan Charit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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की & 1 मदीं हुआ । ईडा ने पूछा क्यों, नहीं हुआ” उन्होंने कही प्रातः- काल से सरकार महददाशय शुद्द नहीं ाये । यह सुन कर दुया- मयी चृद्धा ने दधि थ भरुड़की देकर फलादार कराया । पं कहा जिंस॑ दिन तुंम्दारा भोजन न होवे उस दिन यहां झाकर फलाहार किया करना एक दिन सकार ने श्रघिकारियों से झाकर थह सुना कि ठाकुरदास का श्वाज दिन सर' भोजन नहीं हुझा ! इससे वद्द श्रत्यन्त दुःखित हुए एवं कहा, तुम्हारी जो शिक्षा हुई है उससे तुम काय्य ये।ग्य हो गये दो इस लिये तुम्ददारे इस प्रकार क्लेश सहने का प्रयेजन नहीं है झ्राज इस समय तो जाकर झ्राह्दरादि करो । कल्न प्रातत्काल हो तुम्हारे सस्वन्घ में जो कुछ सुखके कऋदना होगा वंद वः्चर्पति मददाशय से मैं कट्टंगा । दूसरे दिन सबेरं चाचस्पति महाशय के पास जकिर उनसे कहा कि, आप का स्वजाति ठाकुरदास कार्य्य याग्य हो गया है । उसे यंगला च झगरेजी में हिसाब करन को अलों सांति यार्यता दो गई है आप किसी से कद्द कर इसको किसी कार्य्य में लगा दें । इसका चाल चलन भी उत्तम दै। इसको वाचस्पति मे भी स्त्रीकार किया । बड़ीसा ग्राम में वाबस्पति का एक सगा कुटुम्बची था । धह एक नाबालिग पुत्र श्र ख्री छोड़ कर सत्यु की प्राप्त हो गया था | झव कोई रक्षक न रदने से कार्य्यंदूक्त काई विश्वासी पुरुष को रखना श्रावश्यक था ।




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