रहीम - रत्नावली | Raheem Ratnawali

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Raheem Ratnawali by मयाशंकर याज्ञिक - Maya Shankar Yagnik

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४) खाँ छोटी अवस्था से ही इुमायू बादशाह के दरबार में रहने _ लगा था शोर धीरे घीरे झपनी काये-कुशलता से बड़ा सरदार श्र बादशाह का विश्वस्त श्रादमी बन गया था। कननोज की ' लड़ाई में बैरामखांने बड़ी वीरता दिखाई थी। जब इुमायू दार कर फारिस भाग गया तो बेराम खां भी बादशाह से वहां जा मिला थौर फिर भारत पर चढ़ाई कर उसने हुमायू को राज्य दिल वाया । बैरामर्खा के युद्ध-कौशल श्रौर पराक्रम के कारण मुग़ल चंशने फिर एक वार भारत का साध्राज्य प्राप्त किया । हुमायू ने प्रसन्न होकर युवराज डाकबर की शिक्षा का भार भी बैरामख़ां को ही सौंपा श्रौर श्रपने अन्त समय पर राज्य-प्रबंघ भी बेराम खां को देकर शरकबर का झमिभावक नियुक्त किया । अकबर के शत्रुओं को भी बेरामखाँ ने परास्त किया श्र मुग़ल साम्राज्य को सुद्ढढ़ कर दिया । परन्तु झकबर जब बड़ा हुआ झोर राजकाज स्वयं सँभालने लगा तो बेरामस्त्रां का हस्तच्तेप उसे पसंद न आया । दोनों में सनोमालिन्य होगया । श्र श्रन्त में बात यहां तक बढ़ी कि बैराम ने विद्रोह का झंडा खड़ा कर दिया । अकबर उदार प्रकृति का मजुष्य था । बेरामखां को उसने क्षमा प्रदान की, परन्तु इज के लिए जाने को बाध्य किया । एक राज्य में दो झधिपति मला कैसे रह सकते थे ? डकबर श्र बेरामखां के ऋगड़े कसर श्रोर बिस्माकं के मनो- मालिन्य की याद दिलाते हैं। नदी बैराम स्त्री पुत्र सहित दज्ज को जाती समय माग॑ में पारन में ठद्दरा । वहां एक झफूगानी ने पुरानी शत्रुता के कारण _ झवसखर पाकर उसको मार डाला । उस समय झब्दुर्द्दीम की. अवस्था केवल ४ वर्ष की थी । शकबर को यह समाचार मिला तो उसने तुरंत बालक श्रोर उसकी मा को श्यागरे बुल _ भेजा । झब्दुररहीम को एक होनद्दार बालक जानकर अकबर




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