केन्ज़ गाइड | Kanz Guide

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Kanz Guide by एल्विन एच. हेन्सन - Alvin H. Hansanगंगाराम गर्ग - Gangaram Garg

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गंगाराम गर्ग - Gangaram Garg

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4 केनज गाईड माग का मुख्य ख्रोत (80णातट) उपादान झाय (एकल णानेशलणा०) के उस प्रवाह मे है जो उ पादन प्रत्रियात्रों (एए०८९९७) द्वारा उत्पन्न होते हैं । झ्रव तक उपयोग मे न लाये गये साधनों को कार्यों पर लगाने से उत्पादन वढता है और राय में भी वृद्धि होती है। इस प्रकार से प्राय झऔर निपज (०ए.फ00] का एवं चन्नीय प्रवाहू (लएए/का #0५) बन जाता है । इस प्रवाह में वृद्धि होने से जिन साधनों को कार्यों पर लगाया जाता है, उनवा खर्च स्वय ही निकल श्राता है। इसका कारण यह है कि सतु लत श्रवस्थाश्नी में झ्राय प्रवाह (प००श06 डघर80) की राशि में उतनी ही वृद्धि हो जाती है जितनी रादि उपज (फस्०ठे०्ल8) वी वित्री के कारण ्राय-प्रवाह में से निकल श्राही है । कोई भी नवीन उत्पादन प्रक्रिया इस प्रकार कार्यों पर लगे उपादानों (फि्लता8) को आय प्रदान करके उतनी ही माग उत्पन्न कर देती है, जितना कि उस प्रक्रिया से सम्शरण (8पफछ! 5) बढ़ता है । “से” के वाजार नियम के सस्थापित (०128510) कथन ने इस विचार की पष्टि की स्वतत्र-मूल्य-पद्धति (९९८ फुए०९-छ 50 ) में बढती हुई जनसस्या के लिये व्यवस्था हो जाती है श्रौर पूंजी मे वृद्धि होती है । किसी विकासशील समाज मे, नयी फर्म तथा नये कर्मचारी दूसरों को विना निष्कासित किये ही शझ्पनी उपज के बदले मे उत्पादन प्रत्रिया में श्रपना स्थान बना लेते है । इस श्रवस्था मे बाजार को ऐसा स्थिर तथा सीमित नहीं मान लिया जाता, जिसमे विस्तार की क्षमता न हो । बाज़ार उतना ही बडा बन जाता है, जितनी कि बाज़ार मे बिक्री के लिये श्राये हुए उपज वी माना होती है । सम्भरण अ्रपनी माग स्वय ही बना लेता है । यदि व्यापक रूप से देखा जाये तो यह कथन मुरयत विनिमय ग्रर्थ व्यवस्था को चित्रित करता है । परन्तु श्राथिक विचारों का इतिहास इस बात को बारम्वार प्रदर्शित करता है कि किस प्रकार एक महान्‌ जीता-जागता सिद्धान्त, जब विवाद के सागर मे उछाला जाता है, तो भ्रपनी चैतन्यता गया बैठता है । कई बार ऐसा हो्ग है कि इन सिद्धा तो को ऐसी जटिल समस्याओं का विस्लेपण करने के लिये प्रयोग में लाया जाता है, जिनके लिये ये सिद्धान्त श्रनुपयुक्त होते है । जब भी ऐसा किया जाता है तो निद्चित रूप से श्रात्तिजनक निप्कषप निकलते है। यही बात “से” के बाजार नियम के विपय में हुई । ऐसे प्रारम्भिक विद्याथियों पर जो 'केन्जवादी क्रान्ति पर वर्तमान साहित्य को पढ़ते हैं, ऐसा प्रभाव पड़ने वी सभावना है कि 1030 तक जय केन्ज की जनरल ध्योरी नामक पुस्तक श्रकाशित हुई, सभी छोटे-वडे अरवशास्त्रियो ने एक दृढ़ परम्परा- निष्ठ सस्थापक मौर्चा (0त7:0त०६ टा8्छात्था श्ति££) सा वना लिया था । परन्तु यह बात सत्य नहीं है। प्रथम विद्व-युद्ध के श्रास पास जिन श्रर्थशास्त्रियों




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