इलाहाबाद नगर महापालिका के विशेष संदर्भ में भारत के महानगरीय समाज की अभिजन राजनीति का आलोचनात्मक अध्ययन | Allahabad Nagar Mahapalika Ke Vishesh Sandarbh Men Bharat Ke Mahanagariy Samaj Ki Abhijan Rajaniti Ka Aalochanatmak Adhyayan

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Book Image : इलाहाबाद नगर महापालिका के विशेष संदर्भ में भारत के महानगरीय समाज की अभिजन राजनीति का आलोचनात्मक अध्ययन   - Allahabad Nagar Mahapalika Ke Vishesh Sandarbh Men Bharat Ke Mahanagariy Samaj Ki Abhijan Rajaniti Ka Aalochanatmak Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व और भाई-भतीजावाद से मुक्त होते थे अब उनके उपर धर्म और जाति की राजनीति का प्रभाव दृष्टिगोचर होने लगा था भ्रष्टाचार, पक्षपात व अन्य अस्वध्य गतिविधियों धीरे-धीरे जीवन का अंग बनती जा रही थी राष्ट्रीय आन्दोलन के दर्मयान वे शासन विरोधी गतिविधियों का अखाड़ा बन गयी थीं। सभासद अपने बोर्डों के बजाय कांग्रेस समितियों के प्रति अधिक निष्ठावान थे। वे अपना श्रम और शक्ति बोर्ड के कार्यों की अपेक्षा कांग्रेस की हिंसा तोड़ फोड़ और प्रचार गतिविधियों पर अधिक व्यय करते थैं। राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रभाव के कारण लोगों में राजनीतिक चेतना उत्पन्न हुयी थी और उन्होंने स्थानीय राजनीति में अधिक रूचि लेना प्रारम्म कर दिया था स्वाधीनता पूर्व काल में नगरीय राजनीति की कार्यप्रणाली में अवलोकन पे स्पष्ट है कि उस समय मनोनयन का सिद्धान्त महिलाओं अनुसूचित जातियों और विशेष हितों को प्रतिनिधित्व प्रदान करने हेतु लागू किया गया था। किन्‍जु अपने मूलभूत उद्देश्य से हटकर इसका दुरूपयोग पक्षपात, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजा वाद तथा दलगत स्वार्थों की पूर्ति के लिए किया यही कारण था कि इसे अलोकतांत्रिक कहकर 1949 के अधिनियम द्वारा समाप्त कर दिया गया किन्तु 1977 में महिलाओं और वाल्मीक समाज को प्रतिनिधित्व देने के लिए ड्से पुनः लागू कर दिया गया। बाद में संशोधित पंचायत राज्य अधिनियम द्वारा महिलाओं को भी 30 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने की व्यवस्था की गयी। वयस्क मताधिकार लागू होने के बाद से नगरीय राजनीति में धर्म, जाति और धनबल का प्रभाव विशेष रूप से देखा जा सकता है। नगरपालिका चुनाव दलगत आधार पर लड़े जाते और यदि ऐसा होता है तो चुनावों में दलगत राजनीति का प्रभाव नगण्य रहता है। ये चुनाव शक्ति की महत्व के चारों ओर केन्वित होते हैं एक बार निर्वाचित हो जाने के बाद वे अपने चुनाव क्षेत्र से लगातार सम्पर्क बनाने का प्रयास नहीं करतें । अपनी स्थिति और प्रतिष्ठा का ज्यादातर उपयोग अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति अथवा अपने मित्रों और सम्बन्धियों को किसी न किसी प्रकार अनुगृहित करने के लिए कहते हैं । यदि




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