मायापोत | Maya Pot

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Maya Pot by स्वदेश दीपक - Swadesh Deepak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मायापोत : 17 “किसी भी माहौल में, किसी भी स्थिति में न वह घबराता है और न ही :आउट ऑफ प्लेस महसूस करता है । अब राधा मेहरा मेरे विस्तरे के क़रीब 'आ गयी है । उसके चेहरे पर एक चोर मुसकान है । तो इसे मुसकराना भी आता है ? वोलता फिर भट्टी ही है, “डॉक्टर मेहरा, आप इसे बताएँ कि मेरा खून इसे चढ़ रहा है ।” फिर वह मेरी ओर देखकर वात जारी रखता 'है, “बेटे, सारे ब्लड बेंक में तेरे क़ाविल खून नहीं मिला । तुम्हारे ख न में जितनी दराव है उतनी आम लोगों के खून में कहाँ से आयेगी ? आख़िर हम पहुँच गये । हमारा खून तुम्हें बिलकुल फिट बैठा ! ' मनचंदा फिर हँसते हैं । राधा मेहरा अब ज़रा खुलकर मुसकरा रही 'है । मनचंदा कहते हैं, “यू आर ग्रेट मेजर ! ” आई नो दैट डॉक्टर । सारी दुनिया यही कहती है ! ” अब मैं शायद थक गया हूँ । आँखें मूँद लेता हूँ । 'ढलते सुरज के साये चोरों की तरह कमरे में दवे पाँव आ रहे हैं। तो वाद-दोपहर का वक़्त हो गया है । अब दें कम है लेकिन थकावट वहुत ह्दो रही है । वर्मा कुर्सी पर उँघ रहा है । मेरे जागने का उसे पता चल जाता 'है। कुर्सी पास घसीट लेता है। बताता है कि डॉक्टर ने कहा है अभी यहाँ “दस दिन और लगेंगे, मेरी और वर्मा की दोस्ती खामोश क्रिस्म की है । हम दोनों एक-दूसरे से ज्यादा वोलते नहीं; लेकिन एक-दूसरे को सबसे उयादा समभते हैं । वह हमेशा याद दिलाता है कि जान-पहचान, जो अब कई साल पुरानी है, कैसे विचित्र, 'वीयर्ड' तरीके से हुई थी । मैं अखबार के दफ़्तर में “एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका' से कुछ नोट्स लेने गया था | वर्मा रेंफ़रेंस : सेक्शन का काम देखता था । उसे शेल्फ़ तक ले गया जहाँ “ब्रिटेनिका रखा था । फिर उसने पूछा था कि मुझे कया देखना है । मैंने वताया था बिल्लियों 'के वारे में, उनकी आदतों के वारे में कुछ नोट्स लेने हैं। उसने मुझे घूर- कर देखा था कि कहीं मज़ाक तो नहीं कर रहा । तब मैंने उसे अपना पुरा नाम बताया था और सुचना दी थी कि कुछ विदेशी अँग्रेजी प त्रिकाओं 'के लिए लिखता हूँ । उसने हाँ में सिर हिलाकर बताया था कि उसने मे




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