जीवन - दर्शन | Jivan - Darshan

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Jivan - Darshan by शैलेन्द्र कुमार पाठक - Shailendra Kumar Pathak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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युग-पुरुष नेहरू के संकत्प है शऔर प्रजा को सताती है. तो प्रजा को उस सरकार को बदल देने या मिटा देने का भी हक है। हिन्दुस्तान की श्रंग्रेजी सरकार ने हिन्दुस्तानियों की स्वतन्त्रता की ही श्रपहरण नहीं किया है, बल्कि उसका श्राघार ही गरीबों के रक्त-शोषण पर है श्रौर उसने श्राथिक, राजनेतिक, सांस्कृतिक श्रौर श्राध्यात्मिक दृष्टि से हिन्दुस्तान का नाश कर दिया है । इसलिए हमारा विद्वास हैं कि हिन्दुस्तान को भरंग्रेजों से सम्बन्ध-विच्छेद करके पूर्ण स्वराज्य या सुकम्मिल आ्राजादी प्राप्त कर लेना चाहिए।”” मानवता की आत्मा परिषडत नेहरू ने स्वतन्त्रता को मानवता की श्रात्मा बताया है-- “प्राचीन चीन देश की बात है। एक लुह्दार भाले श्रौर ढालें बनाया करता था । बड़ी मज़बूत ढालें वह बनाता था । .. कूह कहता था--'दुनिया का कोई भी मज़बूत भाला मेरी हालों को नहीं छेद सकता ।' .. भाला भी वह ऐसे ही मजबूत बनाता था । बड़ा गयँ था उसे श्रपने तेज भालों पर । कहता था--'ऐपी कोई ढाल नहीं; जिसे मेरे भाले न छेद सकते हों एक दिन एक झादमी श्राया और उस लुहार से कहने लगा-- 'झगर तुम्हारे ही भालों से कोई तुम्हारी ढालों को छेदना चाहे, तो व्या होगा ?' ... यहीं हालत हमारी श्राज की इस दुनिया की है, उसके सोचने के तरीके की है । झादमी अक्सर भ्रपने से ही जुभना चाहता है, जूमता है। वह एक.बात को जितना सच मानने लगता है, उसके विरोध की बात को भी सतना ही सच कहता है। जेसे सच्चाई एक




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