गुप्तकालीन मुद्राएँ | Guptkalin Mudraye

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : गुप्तकालीन मुद्राएँ  - Guptkalin Mudraye

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ॰ अनंत सदाशिव - Dr. Anant Sadashiv

Add Infomation AboutDr. Anant Sadashiv

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
द गुप्कालीन मुद्दाएं सिहासनारोहण से समाप्त कर दिया गया। इस बात के भी निश्चित प्रमागा मिले हैं कि द्वितीय कुमार्णुप्त का पुत्र विष्णुयुप्त सिंहासन पर बेठा और महाराजाधिराज की उपाधि मे विभूषित किया गया था । इस कारण यह अनुमान करना सबंधा गलत होगा कि कुमारगुपत का राज्य ७६ ई० में बुधगुप्त के सिंहासन पर आने पर समाप्त हो गया । सम्भवतः चचा- भतीजे में इस तरह का समभझोता हो गया कि बुघगुप्त को राज्य का अधिक भाग मिले क्योंकि दोनों में वह अधिक शक्तिशाली था ।. द्वितीय कुमारगुप्त नें संभवत पूर्वी बंगाल में एक छोटे राज्य से संतोष कर लिया, जहाँ उसकी मुद्राएँ पर्याप्त संख्या में मिली हैं । यद्यपि बुधगुप्त ने २० वर्ष के लम्बे काल तक शासन किया, तथापिं अभी तक उसकी केवल तीन स्वर्स-मुद्राँ मिली हैं। उसके चाँदी के सिक्के भी कम हैं तथा मध्यदेश प्रकार के ही मिले हैं । नरसिंहगुप्त तथा द्वितीय कमारगुप्त की केवल स्वर्णामुद्राएँ प्राप्त हुई हैं । ई० सन्‌ ४६६ में बुधगुप्त की सत्यु के पश्चात्‌ गुप्त साम्राज्य का इतिद्ास श्रपूर्ण रूप में मिलता हैं । सम्भवतः कुमारगुप्त का पुत्र विष्णुगुप्त इ० सन्‌ ४६० में, पूर्वी बंगाल में, उसका उत्तराधिकारी हुआ और ४६६ इ० के समीप भानुगुप्त पाटलिपुत्र में । भानुयुप्त का कोई सिक्का नहीं मिला हैं ; पर विष्णुगुप्त की स्वणंसुद्राएँ प्राप्त हुई हैं । सिक्कों के झ्ाघार पर गुप्तवंश का अंतिम शासक बेन्यगुप्त था ।. श्रनेक वर्षो तक उसके सिक्क तृतीय चंद्रगुप्त के माने जाते थे। किंतु अब उसका नाम वेन्यगुप्त ठीक तरह से पढ़ा गया हैं । चूँकि दलिण बंगाल में वैन्यगुप्त का ताम्रपत्र मिला, अतः यह अनुमान किया जा सकता हैं कि वह घिष्णुशु्त का पुत्र था। पाँचवी सदी के अंत में हूणलोगों नें पुनः आक्रमण किया, जिसका श्गुद्धा तोरमाणा था। हूण सेना ने पंजाब तथा राजपुताना को रौंद ढाला और ५१४ ई० के समीप चह मालवा में प्रवेश कर गई । ई० सन्‌ १० में सागर जिले में भानुगुप्त तथा उसके सेनापति से हों की मुठभेड़ हुई थी । इस युद्ध सें भानुगुप्त असफल रहा, जिसका प्रमाण ग्वालियर के लेख से मिलता है । उसके उल्लेख से पता व्वलता हैं कि तोरमाण का पुत्र मिंदिर श्रपन शासन के प्रारम्भ में ग्वालियर प्रांत का स्वामी था ।. भाजुगुप्त की “ादित्य” उपाधि नहीं मिली है ; इस कारण यह कहना कठिन है कि ५३० में हों को परास्त करनेवाले बाला- दिव्य तथा भावुगुप्त एक ही व्यक्ति थे या नहीं ।. झधिक सम्भव हैं कि बालादित्य भानुगुप का पुत्र था, जिसने पिता के कार्य को पूर्ण किया हो । इस बालादित्य का व्यक्तिगत नाम ज्ञात नहीं हैं। यदि बालादित्य और पुरुगुप्त के पुत्र नरसिंदगुप्त एक ही व्यक्ति थे तो यह असम्भव नहीं कि; स्वणामुद्रा, जिसके पुरोभाग पर नर उत्कीर्ण हैं तथा प्रष्ठभाग पर बिरुद बालाईित्य खुदा है, द्वितीय बालादित्य की प्रचलित की हुई मानी जा सकती हैं । चद्द हों का विजेता था मालवा तथा मध्य देश से हों का निष्कासन गुप्रतासन की अवधि को बढ़ा न सका। मालवा के यशोधर्मन ने बालादित्य को सहयोग देकर उन्हें निकाल बाहर किया ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now