बृहत जर्राही प्रकाश भाग १ | Brihat Jarrahi Parkash Bhag 1

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Brihat Jarrahi Parkash Bhag 1  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१) चिकित्सा करने से आराम दो मी जाता है आर जो वरम की स्याददी कंठ से नाँचे उतर आइ दोय तो रोग को असाष्य जा | नो और फोडे का निशान ऊपर छिखे चित्र में देखठों इसकी ' चिकित्सा इस प्रकार से होती दे कि पाहिठे सरेरू की फरद खोले और तीन छटांक रुपिर निकाले ओर फरद के पीछे वमन |. कराना दित दे क्योंकि यह रोग दिल अर्थात्‌ हृदय के समीप में होता दे एपा न हो कि मवाद नीचे उतर आ्ांवे । वमन औपाधि यह हें । # चनुसखा वमन कराने की के सिरका 3० तोे, लाठ बूरा ९ तोे, मेंनफठ ६ माशे इन. सबको दो सेर जठ भें ओटांवे जब लाधा जल बाकी रहजाय . तब उतार कर रखले फिर इसको दो तथा तीन बार में पिलादे '' तो वमन हो जायगी और उस दाने पर तथा उस स्याही एर |. लेजाव ठगावें तथा प्ठास्टर रवसें जब छाढा पडजाय तों दूसरे दिन ब्रातःकालठ काट डा फिर ऐसा मरहम ठगांवे कि जिस से घांव न भर जावे और खूब मवाद निकठ जावे । वह मर दम यू छू नुखेसा मरहम ६६ |. तूतिया हारुनी 9 तोला; जंगाठ हरा १ तोले; तबकी । द्रताठ ३ मादो, कच्चा सुहागा चोकियों १ तोले, बिरोजा । तर ४ ताल, फिंटाकिरी ९ तोंठे, आंबाहलदी १ तोले इन । सबको मठान पीसकर विरोजे में मिलावे. फिर उस में गोका ' 'इत ४ नाले यांढा ९ करके मिलावें फिर ब्रांडी शराब तथा कस इन मरदम को खूब थोकर घाव पर ठगावे | डी




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