पूजन - पाठ - प्रदीप | Pujan Path Pardeep

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री जिनेन्द्राय नम पूजन-पाठ-प्रदीप श्री संगल।ष्टक स्तोत्र भीम स-सुरावुरेर्द्र-सुकुट-प्रयोत-रत्तप्रभा- सास्वत्पादनखेन्दव प्रचचनाम्भोधीस्दव: स्थायिन: । ये सर्द जिन-सिद्ध-सयनुगतास्ते पाठकाः साधव स्तुत्या योगिजनइच पब्चगुरवः कुवन्ठु ते सडज्लम्‌ 1 १ गर्थ--शोभायुक्त और नमस्कार करते हुए देवेन्द्रो और, जसुरेन्द्रों के मुकुटो के चमकदार रत्नों की कान्ति से जिनके श्री चरणों के नखरूपी चन्द्रमा की ज्योति स्फुरायमान हो रही है । भौर जो प्रव- चन रूप सागर को वृद्धि करने के लिए स्थायी चन्द्रमा हैं एवं योगिजन जिनकी स्तुति करते रहते हैं, ऐसे अरिहन्त सिद्ध भाचाय उपाध्याय और साधु ये पाचो परमेष्ठी तुम्हारे पापों को क्षालित करें भौर तुम्हे सुखी करें ॥1१॥। नाभेयादिजिना: प्रघरत-वदना. ख्यातादचलुविश त्ति शभीमन्तो भरतेदवर-प्रभतयो ये चन्िणो द्ाददा । ये विष्णु-प्रतिविष्णु-लाज़्लघरा: सप्तोत्तरा विद तिः त्रकाल्ये प्रथितास्त्रिपप्टि-पुरुषा: कुवन्तु ते मद्गलम्‌ ॥२॥।




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