शिक्षा मेन नए आयाम एव्न नवाचार | Shiksha Men Naye Aayam Avam Navachar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
230
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सरला चतुर्वेदी - Sarala Chaturvedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शोपचारिकेतर शिक्षा गर
कत्तब्यों, अधिकारा, लौर जिम्मेदारिया के प्रति जागरूक बनेगे और एक अभि-
नव, जनताह्िक, घम निरपेक्ष और समाजवादी समाज की रचना में अविरल
भागीदारी के लिए तैयार हांगे । इस कायक्रम को हमे इस प्रकार आागे बढ़ाना
चाहिए कि हमे बडे पैमाने पर आवश्यक अनुभव प्राप्त हो जाय, स्रोत व्यवित
प्रशिक्षित हो जाय, आवश्यक शिक्षा सामग्री तैयार हा जाय, राष्ट्र, राज्य
शौर जिला स्तरों पर आवश्यक संगठनों का निर्माण हो जाय और इस
कार्यक्रम के पप् में प्रबल जनमत तैयार हो जाय । उससे हम छटी योजना में
इस कायह्रम को सारे राष्ट्र मे शिक्षा के प्रत्येक स्तर पर विकसित कर सकेंगे ।
समिति इस बात पर भी बल देना चाहती है कि आओऔपचारिकेतर शिसा सभी
वर्षों के युवा भर प्रौद शिक्षाधियां के लिए जो उपयोगी कौशल और ज्ञान
प्राप्त करना चाहत हैं, सीखने वी एक प्रभावी विधि है ।
(गए) प्राथमिक्ताएँ-ओऔपचारिकेतर शिक्षा के निम्नलिखित कायक्रम राष्ट्रीय
महत्व के हैं अत उ हू सारे देश म प्राथमिकता मिलनी चाहिए --
(1) वे कायब्रम जो आधिक, सामाजिक, भौर शेक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए
चर्गों वी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, इन वर्गों मे भी उनकी जो बीस
सूलीय कामन्रम से सीधे सम्बाघित हैं, भयवा उससे लाभ उठा रहे हैं ।
(2) वे बार्पज्रम जो परिवार-करल्याण के प्रयासी को शेक्षिक समथन
दत हैं ।
(3) वे कार्यग्रम जो बच्चा, युवका भौर महिलाओ की न्यूनतम शेक्षिक
शावश्यकताओों की पूरति करते हैं, युवकों के लिए वे कार्यक्रम जिनमे उठें रोज-
गार के लिए तैयार करने पर विशेष ध्यान दिया जाता है ।
(4) इपको एवं ओौद्योगिक मजदूरा के लिए कायब्रम जिससे देश की आाधिक
प्रगति तंजी से हो 1
(द) मत्तर्राष्ट्रीय शिक्षा मायोग के विचार कि
*मोपचारिक्तर शिक्षा एक ऐसा शब्द है जा अब शैक्षिक मापा वा एक
अग बन गया है, यद्यपि यह शेक्षिक कायक्रम का एक सच्चा और पुरा मांग
नही हो पाया है । बोपचारिकेतर शिक्षा की समग्र दृष्टि को प्रतिविम्बित करती
है गौर उसे स्टूलो भर वालेजों तक सर्थात् सत्यागत शिक्षा एव निर्देशन की
सकुचित धारणा से मुक्त करती है, व्योकि यह ध्यान मे रखना आवश्यक है कि
सीखना मनुष्य मात्र का एक अनिवाय लक्षण है जो पृथ्वी पर मानव के अस्तित्व
एवं विकास के लिए झावश्यक है। जीवन की सब परिस्थितियों में मनुष्य सीघता
है । ज्ञानार्जन एव नान के बनुप्रपोग विशिष्ट रथ में सीखने की प्रब्रिया केवल
User Reviews
No Reviews | Add Yours...