भारत चीन और उत्तरी सीमाएँ | Bharat Chin Aur Uttari Simaen

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Bharat Chin Aur Uttari Simaen by राममनोहर लोहिया - Rammanohar Lohiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रस्तावना इस पुस्तक में भारत की उत्तरी सीमाओं, और खास कर काइमीर, उवंसीअम्‌ नेपाल और तिब्बत पर, मेरे कुछ भाषणों और लेखों का संकलन है । इनमें से कोई भो १९४९ से पहले का नहीं है । इससे पहले के लेखो को इसलिए नहीं लिया गया कि किताब फिर बहुत बड़ी हो जाती । इसका यह मतलब नही है कि वे किसी मानी में कमतर महत्त्व के हैं। असल में तो उनमें से कुछ से यह पता चछता है कि मेरे, जेसे दूसरे लाखों व्यक्तियों के सोचने के ढंग में सम्भवतः ग़लती रही । मुझे याद नहीं है कि मैंने कभी हिमालय को देश का संतरी समझा है। मझे जयजयकार वाला यह गीत पसंद नहीं है, और शायद यही भाव शुरू जवानी के दिनों में रहा हो । लेकिन निद्चित तौर पर मुझे याद है कि सन्‌ १९४८ के आसपास जब कि चीन कम्यूनिस्ट हो गया और इसीलिए मेरी दृष्टि में प्रबल और जंगली दोनो हिमालय के बारे में मेरे मन में शंकाएँ पदा हो गयी थीं । ये छांकाएँ मेरे मन में असल में और पहले सन्‌ १९३८-३९ के आसपास उठीं जब कि मैंने भारतीय इतिहास को थोड़ी गहराई से पढ़ना शुरू किया । विदेश नोति भर रक्षा नीति के मामले में सरकार की मूखंता का कारण इतिहास के बारे में परपरागत जड़ धारणाएं रही हैं, जिनमें एक यह है कि हिमालय भारत का रक्षक है। यह बेहुदा खयाल कहाँ से पदा हुआ -अपन अज्ञान के कारण या साम्प्राज्यवादी विचार-विकृति के कारण ? विदेश नीति और रक्षानीति की ग़लतियाँ, इतिहास की स्थायो और भीतरी शक्तियों के त्रुटिपूण अवलोकन के कारण जितनी हुई हैं, उतनी ही वर्तमान के दोषपुणं मूल्यांकन के कारण । मैंने इन दोनों पहलओं पर विचार किया है। इसके कारण कभी- कभी मेरे पाठकों भर श्रोताओं को कठिनाई होती है। लेकिन जीवन की विषम समस्याओं को सुलझाने का यही एक रास्ता है । अनेकविध कारणों से भारत के वतंमान मानस के पास दुनिया की सामाजिक, सामूहिक समस्याओं को समझने के लिए, कोई मूल्य-मान नहीं है । काफ़ी लम्बे अरसे तक




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