काव्य - कला | Kavya - Kala

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Kavya - Kala by गंगा प्रसाद पाण्डेय - Ganga Prasad Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आलोचना सादित्य मे सौन्दय-सपादन की रुचि का ही फन श्राल्लोचना है। यदि साधारण शब्दों में इम साहित्य को उपवन मान लें तो '्राल्लोचक का काम माली का काम होगा । उसका काम बगीचे की ऊगड जमीन को खाद देकर उपनाऊ बनाना तथा तरह तरह के सुगन्वित फूल लगाना एवं उनकी रक्ा करना है | किन्तु कुशल माली इस बात को भी भली भाँति जानता है कि उसका काम केवल 'पौधों फो परिवर्दित करना हैं नहीं है, वरन्‌ सुरुचि के श्रनुशार उन्हें काटनेन्डाटने का भी है। उसकी इस काट-छाँट की कारीगरी से फल-फूल-बिद्दीन एफ साधारण पौधा भी श्रपनी जगद पर पूर्ण श्रौर खिला सा मालूम दोने लगता है। सादित्य भे इसी सौन्दयं की रक्षा तथा निर्देश का काम श्ालो- चककाद। मनुष्य श्रपनी इचि की काट-छाँट करके किसी झ्पनी ही स्वना में एक विशेष प्रकार का सौन्दर्य यढ़ा-वटा सकता है | 'परतु यो ईर्र '्रथवा प्रकृति की स्चना दै वह मनुष्य के वश के माएर पी यात है। इस नियम फे श्रनुलार श्ालोचक साहित्य में सुदधिपूर्ण शौन्दर्य की स्थापना कर सकता है, क्योंकि साहित्य कला ऐ, सो मनुष्प-्णीत है 'प्रीर जो ऊुशल कारीगरों द्वारा मुम्दर से “सुएसाग यनाई जा सफती दे । इस प्रकार या सौन्दर्य-योग लेसक तया 'ग्रालोचक दोनों दे सकते हैं । बिन लेप तो कहीं यहीं श्पने भागायेश में यूष्ठ भूल भी रर सफता है, पर घालौचक का हो काम




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