जैन शिक्षण पाठमाला | Jain Shikshn Pathmala

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Jain Shikshn Pathmala by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१३) २७ मन, वचन और कायाकी शुद्ध परिणुति रखना सो धम, : पाठ ७्वां. गुरु भक्ति । '' २ किसी भी जगह पर शुरु मिले दो खड़े होकर वंदना करना. २ गुरु चाहर गाँव स आते होवे उस स- . मय चाहे जितना कार्य होवे छोड़ कर सामने जाना, शोर विहार ' करे तब पहुंचाने को जाना» ः हे रास्ते में चलते हुए शुरु से छागे, जोड़े में छोर बहुत करीब पीछे रदकर चले ना या खड़े-रददना नदी अकिन्तु थोड़ा अतर रख .कर पीछे ४ चलना. ४ शुरु वोखते होवे जव बीच में नहीं बोलना: गुरु घुलावे तो सर्पर खड़े होकर जबाब देना पर सुनी अखणसुनी क्ररना नहीं. ६ गुरु के सामने कठोर और हुच्छ भाषा में नहीं बोलना. ः




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