स्थानान्ग सूत्र | Sthananag Sutra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(८१७ ) क्लिष्ट कत्पना जम्दूद्वीप के भरत और ऐरवत वर्प में अतीत उत्सपिणी के छुपम-सुषमा कालवर्ती मनुष्यों की उत्कृष्ट आयु तीन पत्योपम काल का था यह कथन सुचाडू ४९३ में है--यहाँ विचारणीय यह है कि तीन पत्योपम काल को “छच्च अद्ध पलिओवमाइ परेंमाउ पालइत्ता” इन शब्दों में संकलित करके छठे ठाणे में कहा है। तीन पल्योपम काल के आयु को छ का आधा कहकर छठे ठाण में कहना सूच संकलन काल की प्रचलित पद्धति के अनुसार उपयुक्त माना जा सकता हैं किसतु आधुनिक पाठक इस प्रकार के संकलन को बिलष्ट कल्पना की संज्ञा ही देते हैं । : वाचना भेद या विवक्षा भेद सूवाडु: ४९१ में छः प्रकार के ऋद्धि प्राप्त मनुष्य और था प्रकार के अनत्दद्धि प्राप्त (ऋद्धि रहित) मनुष्य कहे गये हैं। प्रज्ञापना प्रथम पद के सूत्र द५ में भी ऋद्धि प्राप्त मनुष्य - का भकार के ही कहे गये हैं किन्तु अनऋद्धि प्राप्त (रिद्ध रहित) मनुष्य € प्रकार के कहे गये हैं। स्थानांग में कथित छः प्रकार के रिद्धि रहित मनप्यों से मज्ञापना में कथ्रित रिद्धिरहित -मनष्य सर्वेथा भिन्न हैं। स्थाचांग में उबत्त छः प्रकार के रिद्धिरहित मनप्य अकर्म भुमिक हूं । जब कि. प्रज्ञापना में उक्त रिद्धि रहित मनष्य कर्म मूमिक है । इस




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