श्री उत्तराध्ययन सूत्रम भाग - 2 | Shri Uttaradhyayan Sutram Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
497
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चर्चा नहीं हो, इसी सकल्प को लेकर चल रहे है। ऐसे उत्कृष्ट तपस्वी आचार्य देव को पाकर
जिनशासन गौरव का अनुभव कर रहा है।
वीर्याचार-सतत अप्रमत्त होकर पुरुषार्थ करना वोर्याचार है। आत्मशुद्धि एव सयम में स्वयं
पुरुषार्थ करना एव करवाना वीर्याचार है।
ऐस पंचाचार की प्रतिमूर्ति हैं हमारे श्रमण सघ के चतुर्थ पट्टधर आचार्य सम्रादू श्री शिवमुनि
जी म। इनके निर्देशन में सम्पूर्ण जैन समाज को एक दृष्टि की प्राप्ति होगी। अत: हृदय की विशालता
के साथ, समान विचारों के साथ, एक धरातल पर, एक ही एकल्प के साथ हम आगे बढें और
शासन प्रभावना करें।
निर्भीक आचार्य-हमारे आचार्य भगवन् आत्मबल के आधार पर साधना के क्षेत्र में आगे बढ
रहे है। सघ का सचालन करते हुए अनेक अवसर ऐसे आये जहा पर आपको कठिन परीक्षण के
दौर से गुजरना पडा। किन्तु आप निर्भीक होकर धैर्य से आगे बढ़ते गए। आपश्री जी श्रमण सघ के
द्वारा पूरे देश को एक दृष्टि देना चाहते है। आपके पास अनेक कार्यक्रम हैं। आप चतुर्विध सघ में
प्रत्येक वर्ग के विकास हेतु योजनाबद्ध रूप से कार्य कर रहे है।
पूज्य आचार्य भगवन् ने प्रत्येक वर्ग के विकास हेतु निम्न योजनाएं समाज के समक्ष रखी है-
१ बाल सस्कार एवं धार्मिक प्रशिक्षण के लिए गुरुकुल पद्धति के विकास हेतु प्रेरणा।
२ साधु-साध्वी, श्रावक एव श्राविकाओ के जीवन के प्रत्येक क्षण में आनन्द पूर्ण वातावरण
हो, इस हेतु सेवा का विशेष प्रशिक्षण एवं सेवा केन्द्रो की प्रेरणा।
३ देश-विदेश में जैन-धर्म के प्रचार-प्रसार हेतु स्वाध्याय एवं ध्यान साधना के प्रशिक्षक वर्ग
को विशेष प्रशिक्षण।
४ व्यसन-मुक्त जीवन जीने एव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र म॑ आनद एवं सुखी होकर जीने हंतु
शुद्ध धर्म-ध्यान एव स्वाध्याय शिविरों का आयोजन।
इन सभी कार्यों को रचनात्मक रूप देने हेतु आपश्री जी के आशीर्वाद स॑ नासिक म॑ “श्री
सरस्वती विद्या केन्द्र' एव दिल्ली में “भगवान महावीर मेडीटेशन एंड रिसर्च सेंटर ट्स्ट' की
स्थापना की गई है। इस केन्द्रीय सस्था के दिशा निर्देशन में देश भर में त्रिदिवसीय ध्यान योग
साधना शिविर लगाए जाते हैं। उक्त शिविरों के माध्यम से हजारो-हजार व्यक्तियों ने स्वस्थ जीवन
जीने की कला सीखी है। अनेक लांगो को असाध्य रोगो से मुक्ति मिली है। मैत्री, प्रेम, क्षमा और
सच्चे सुख को जीवन मे विकसित करने के ये शिविर अमोघ उपाय सिद्ध हो रह है।
इक्कीसवीं सदी के प्रारभ में ऐसे महान विद्वान् और ध्यान -योगी आचार्यश्री को प्राप्त कर जैन
सघ गोरवान्वित हुआ है।
-शिरीष मुनि
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