गल्प - संसार - माला भाग - 3 | Galp Sansar Mala Bhag - 3

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Galp Sansar Mala Bhag - 3 by रवीन्द्रनाथ ठाकुर - Ravindranath Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ बंगला सन्‌ १२६८ के २४ वैशाख के दिन जोड़ा साँकूर के ठाकुर परिवार में रवीन्द्रनाथ का जन्म हुश्रा था । रवीन्द्रनाथ महर्षि देवेन्द्रनाथ के कनिष्ठ पुत्र थे । स्कूलों श्रौर कॉलिजों में जो पाठ्य क्रम था, उसके फेर में ये नहीं पड़े थे श्रौर इन्होंने घर में दी विद्याध्ययन किया था। १७ वर्ष की श्रवस्था में ये सबसे पहले विलायत गये थे । इसके थोड़े ही दिन बाद इन्हें फिर कानून पढ़ने के लिए विज्ञायत जाना पड़ा था । लेकिन काचून की पढ़ाई इनके स्वभाव के श्रनुरूप नददीं थी । इसलिए ये लौटकर स्वदेश चते श्राये श्रौर तब इन्दोंने मन लगाकर साइित्य-सेवा करना आरम्भ किया । ४० वष की श्रवस्था में दी ये झपने समसामयिक कवियों, नास्यक[रों, उपन्यास-लेखकों अर निबन्घ-लेखकों में सवश्रेष्ठ माने जाने लगे ; यद्यपि उन दिनों के कुछ लेखक इनकी निन्दा करके दी प्रसन्न दोते थे । सन्‌ १६१३ ई० में ये फिर एक बार विलायत गये थे । उस समय इनकी श्रघिकांश बेंगला-रचनाश्रों के श्रगरेजी में श्नुवाद हुए थे । इसके फल-स्वरूप इन्हें नोबल-प्राइज प्रास हुश्मा,था श्रौर ये श्राधुनिक जगत्‌ के झन्यतम तथा स्वश्रेष्ठ लेखक माने गये। इसके उपरान्त इन्होंने प्रथ्वी के प्रायः सभी सम्य देशों में भ्रमण किया था ; श्र उस समय इनकी मनीषा, पांडित्य, प्रतिभा श्रौर सबसे बढ़कर इनके सौन्दय तथा सदाचार ने सभी विश्ववासियों को मुग्ध कर लिया था । इन्दोंने तपोवन के आादश पर सरक्ष श्रौर झाडम्बर-रहित जीवन-निर्वाह श्रौर शिक्षा- दान के उद्देश्य से 'शान्ति-निकेतन” नामक श्राश्रम स्थापित किया था । वढ्दी श्रब विश्व-भारती या सावभौम ज्ञान-निकेतन के रूप में परिवर्तित दो गया है। रवीन्द्रनाथ की मृत्यु उनके .पूवजों के निवास-स्यान कलकते में ७ श्रगस्त १६४१ को हुई । इसमें सन्देद नहीं कि इनकी लिखी हुई उक्त कद्दानी इनकी प्रतिभा की . एक उस्लेख-योग्य शाखा है | लेकिन इस शाखा का उन्होंने बराबर श्रनुशी- लन नददीं किया है। एक बार मध्य वयष में जमींदारी की देख-रेख के प्रसंग में इन्हें पद्मा नदी के किनारे कुछ दिनों तक रद्दना पड़ा था । उस समय :




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