स्वातन्त्र्योत्तर कविता का वैचारिक संघर्ष | Svatantryottar Kavita Ka Vaicharik Sangharsh

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Svatantryottar Kavita Ka Vaicharik Sangharsh by डॉ॰ वी॰ कृष्ण - Dr. V. Krishn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राक्कथन / 15 संक्षेप में प्रस्तुत योजना कविता की बेचा रिक क्षमता और उसकी सामा- जिक शक्ति के रहस्य को उद्घादित करती अंतसखी वैयक्तिक चेतना तथा उसकी बहिम खो ऐतिहासिक कायंप्रेरणा को आन्दोलन का रूप देने से उसकी! उपयोगिता स्पष्ट करती है । और यह आन्दोलन भाषा के रूप में कारगर हो जाता है । अन्तत: कविता एक वैचारिक आन्दोलन का कार्य सिभाती अध्ययन रुचि के अनकल स्वातंत्योत्तर हिस्दी-तेलग कविता की जो दिशा मुझे उचित प्रतीत हुई उसी का अनुपालन मैंने किया है ! कविता को समाज के परिप्रेक्ष्य में समझने का प्रयास जरूर किया है। अनावश्यक और जरूरत से मधिक उद्धरणों का प्रयोग नहीं किया है, जहाँ आवश्यक समझा उन्हीं स्थलों पर उद्धरणों का संदर्भाचित प्रयोग किया है, ऐसा मेरा विश्वास है। परम आदरणीय आचायं भीमसेन निमंत्र जी की उदारता और अमूल्य निर्देशन को शायद ही कभी भुला पाऊँं । उनके प्रति शब्दों द्वारा आभार मकट करना मात्र रस्म अदायगों होगी । आस्था विश्वविद्यालय, हित्दी विभाग के भाचायें एस, वी. माधवराव जी से समय-समय पर जो प्रोत्साहन भर मागंदश न मिला है, शब्दों में कहना सम्भव नहीं है। वास्तव में वे मेरे अभिभावक की तरह हैं भौर इससे अधिक कहने का मुझमें साहस नहीं है । डा. के. लीलावती, छृप्ण मोहन और मेरी सहधमंचा रिंगी श्रीमती जुक्की से जो सहयोग सिला अविस्मर- णीपय है। इनके सहयोग के अभाव में प्रस्तृत अध्ययन का पण होना कटठित था । अतः मैं इन सबके प्रति हुय से कृतन्ञ हूं । तैलूग विश्वविद्यालय, हैदराबाद ने ने पुस्तक प्रकाशन योजना के अन्तर्गत अनुदान के रूप में आर्थिक सहयोग देकर मुझे अनुग्रहोत किया है । तद॒थ मैं कृतन्ञ हूँ । अन्त में, मैं उन सभी कवियों और लेखकों का आभारी हूँ, जिनवी छुतियों से इस काये में सहायता मिली है । >नी ० कृष्ण




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