चीन की सांस्कृतिक क्रांति | Chin Ki Sanskritik Kranti
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
73
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)डा
सातवां, आज चीन अपने को अन्तरो्ट्रीय सहारा क्रान्दि
मूख म्राण-केन्द्र के रूप में अनुभव कर रहा है । इसीलिए ऊ ये दुज
सासरिक,: राजनेतिक तथा खासाजिक शक्ति के रूप में एवं संस्क।
जनचित केत्र में एक व्यक्ति जसा उसका खड़ा इोना अर उसकी छगा-
तार शक्ति-दृद्धि आण॒विक युद्ध के विरुद्ध शांति के पक्ष में जिस तरह
एक गारंटी है उछी तरह दुनिया के विभिल देशों के तमाम क्रान्तिकारी
आन्दोढनों को सक्रिय सदद पहुँचाने तथा सजबूत बनाने के लिए भी
आज यह निहायत जरूरी है । इसीलिए यह सिफे उसकी आन्तरिक
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आवश्यकता-अपनी अर्थ-व्यवस्था की आवश्यकता तथा राष्ट्रीय दृष्टिकोशु
से ही उत्पन्न नहीं हुआ । अन्तरोष्ट्रीय साय्राज्यवाद-विरोधी जिन
आदोलनों को बह आज मदद पहुँचाना चाह रहा है उनकी आवश्यक-
ताओं की पूत्ति के छिए थी चोन का काफी तेजी से एक उन्नत आर्थिक
एवं सामरिक शक्ति के स्तर पर आना जरूरी है। छगभग, सोवियत
युचियन के स्तर पर उसका जा जाना आवश्यक है । क्योंकि सबने में
चाहे आश्वयंजनक सले ही ऊगे; पर यह सच है कि सोवियत नैवस्त्र
की अजीवोगरीब भूमिका के चछते ही आज आर्थिक तथा सामरिक
चेत्रों से सोवियत की श्र पता इस सासले में कुछ चुकसानदेह रही है ।
चीन एवं सोवियत युनियन के बीच आर्थिक क्षमता की जो बविपसता
है उसे अगर दूर किया जा सका तो अन्तरोष्ट्रीय ब्लाम्यवादी आंदोछन की
मौजूदा दुरावस्था को बदढछ ढाठना, दूसरे-दूसरे देशों को अभावित.
. करना; साम्राउ्यवाद-बिरोधी ताकतों को तथा समाजवादी खेमा की
.. सेढच्वकारी शक्ति को विश्वव्यापी साम्राज्यवाद-विरोधी आंदोछन में
_ एकजुट करना उसके ठिए सम्भव हो सकेगा। क्योंकि ऐसी बहुत
नमी
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