जल की खोज : अमृत की प्राप्ति | Jal Ki Khoj Amrit Ki Prapti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( 9 ) हृदय परिवर्तेंन का संकेत नहीं है । मेरे रूप, मेरे सौन्दयें का भ्रदृष्य प्रमाव झापके हृदय, आपके मस्तिष्क में समाहित हो गया है । जिस दिन रूप पुण्य की पंखुरियाँ सूखने लगेंगी पराग के झरते ही पापका स्नेह स्वयं ही विलोन हो जायेगा । 2 2८ है वर्ष बीत गये, सरस्वती ने मत्य के लिए. अनेक प्रयत्त किये, पर झसफल रही । श्रौर एक दिन ऐसा आया कि मरने की कामना को मी मारना पड़ा । मातत्व ने उसके हुदय में वात्पल्य को जन्म दिया, मत्य को कामना करने वाला हुरय मी पनजाने में मीठी लोरियाँ गुनगुनाने लगा । अंग-घंग में विचित्र सी धनमति मर आई । उसके हाथ थपकियाँ देने भोर अधर लोरियाँ गाने बरबस व्याकुल हो उठे । यह मातत्व की माँग थी भ्ोर नारी की अ्रसमर्थता ! मातत्व एक दिन सफल हुप्रा । सरस्वती ने एक स्वस्थ और सुन्दर बालक को जन्म दिया । सरस्वती कमी मत्य की कामना करती शभ्ौर कभी जीने की !' वह एक उलझनमरी जिन्दगी जी रही थी । सरस्वती की विशिष्ट प्रतिमा ध्ौर संकल्प के घनी भ्राता कालकाचार्य मौन नहीं बेठे, ठाकपति की सहायता से उन्होंने प्रवन्ती पर आक्रमण किया । विलासिता की क्रोड़ में क्रोड़ा करने वाले गर्द भमिलल ने मी यद्धस्थल में क्षत्रि- योचित पराक्रम का प्रदरदन किया, किन्तु प्रस्त में उसके हाथों से खड्ग छिटक कर दूर जा गिरा । वह बन्दी बना लिया गया ! कालकाचाय ने एक दुर्भाग्य को दूर करने के लिए दूसरे दुर्माग्य को झामन्त्रित किया । पहले बलात्कार, अनीति, भ्रष्याचार की घटनाएं यदा-कदा होती थी, प्रब वे दकों के जीवन का भंग बन गई । दाकों के साथ ही उज्जधिनी राज्य पर दुर्माग्य ने प्राधिपत्य कर लिया । कालकाचायें पीड़ा से कराह उठे, सरस्वती भ्राँसुओं में डूब गई । एक दिन काल का चायें से सरस्वती ने कहा-- “एक सतीत्व के प्रतिद्योघ की ध्ररिन में प्रतिदिन झनेकों सतीत्व जल रहे है । मारतीय संस्कृति में अनेकों संस्कृतियाँ समाहित है। जिस देश की माटी की सौंघ गन्घ, उवंरापन, संस्कृति की गरिमा विष्व को ज्ञान-दान देती रही है, उस देश के हृदय मध्य-उज्जयिनी पर विदेशी दासन ?. कालान्तर में विदेशी कुसंस्कार हमारो संस्कृति को ढस लेंगे, तीथेंकरों के जयघोष, राम- सीता को पुनीत गाथाएं, वेदों के मन्त्र, भरहंत दारण पव्वज्जामि जैसे पावन




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