सतवंती | Satvanti

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Satvanti by चंद्रशेखर दुबे - Chandrashekahr Dube

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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2 संगवान की हार किसी गांव में एक ब्राह्मण और उसकी ब्राह्मणी रहतें थे । उनके कोई बाल-बच्चा नहीं था उन्होंने भगवान की बड़ी लगन से मानता की । परमेश्वर ने प्रसन्न होकर उन्हें एकदम तीन संतानें दी--कौवा बिल्ली और देर उन्होंने इन्हींपर संतोष कर लिया । कौवा बड़ा होने पर रोज भगवान के दरबार की छत पर जा- कर बेठने लगा । एक दिन भगवान के दरबार में इसी गांव की चर्चा छिड़ी । भगवान ने उस गांव में उस साल अकाल फंलाने का निव्चय किया । चूहों से खेतों में गेहूं नष्ट करवाने का तय हुआ । कौवा भगवान की कचहरी की छत पर बैठा-बेठा यह सब सुन रहा था । उसनें फौरन अपने गांव में जाकर यह खबर फैला दी । गांववालें इस बुरी खबर को सुनकर डर गये । उनकी यह दशा देख बिल्ली ने उन्हें धीरज बंधाया । बोली मेरे होते तुम्दे चूहों से डरने की क्या जरूरत है ? गांववालों की हिम्मत बंघी । जो दिन तय हुआ था उसी दिन भगवान की आज्ञा से चूहों के दल-के-दछ उस गांव के खेतों की ओर उमड़ पड़े । बिल्ली तो जाट जोह ही रही थी । उसनें झपटकर कुछको तो मार डाछा कुछ को घायल कर दिया बचे-खुच चूहे जान लेकर भाग गये । गाववाले आफत से बच गये एक दिन कौवा फिर खबर लाया कि भगवान ने अब हिरनो




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