साहित्यकार निकट से | Sahityakar Nikat Se
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नरेश
श्रीमती मद्दादेवी चर्म तथा प० सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराल' को
आमंत्रित करने की वात तय की गयी !
* मैंने राय दी 'यदि पंतज्ा को आमत्रित किया जाय तो
कैसा रहे
कुसुमाकरजी ने कद्दा 'मुक्के कोई आपत्ति नहीं यदि पंतजी
आना स्वीकार करें 1?
मैं पतजी की कवितायें पढ़-पदू कर धनका भक्त सा दो गया
था। पंतजी को कवि-सम्मेलन में बुलाने की उतनी इच्छा नहीं
थी जितनी रहें. देने की । इतनी सुकूमार मावनायें इतनी
सुकोमल भाषा में व्यक्त करने बाले पं० सुमित्रानन्दन पंत को
एक बार देखने तथा उनसे चात करने के लिये किसका जी न
चाहेगा * मे ऐसा सुयोग देसकर इनसे मिलते की कामना
करने लगा।
'. प्रश्न हुआ 'पंतजी को कौन ला सकता है 1*
यद्यपि इसके पूर्व न तो कभी मैं प्रयाग गया ही था 'और
न इतने सुप्रसिद्ध साहित्यकार से कभी मिला दी था फिर भी घोल
सठा 'सै चेप्टा कर सकता हूँ 1”
अत में सु ही प्रयाग मेलने का निश्यय फिया गया । दूसरे
दिन अपने एक सहपाठी तथा स्त्० राय देवीप्रसाद 'यूर्णर के
चशघर राय गोपीचन्द को साथ लेकर मैं प० सुसिव्ानन्दन पंत
में मिलने फे लिये प्रयाग चल दिया ।
राय गोपीचन्द यड़ें देंसमुख और मिलनसार थे । रेल में मैंने
दनसे कहा 'क्योंजी, प तजी से कैसे मिलना होगा *”
उनसे मिज्ञने में क्यों भवड़ा रहे दो है इनकी शकल-सूरत
सादिस्पकार निकट से--
व
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