परीक्षामुखसूत्रप्रवचन भाग - 24,25,26 | Parikshamukhasutrapravachan Bhag - 24,25,26

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Parikshamukhasutrapravachan Bhag - 24,25,26 by मनोहर जी वर्णी - Manohar Ji Varni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चपुदिश भार [१ माननिपर पर फल प्रम+णका है शल्य थी सवन्घ नही माना जा सकता घीर फिर यह वनलायों कि जेने चढ़ रहें है वे ना कर दो कि श्रप्रमाणाको ब्याट्रतिये प्रमाण की ब्याद्ततिषे प्रमग्गकी व्यवस्था बनने! है धर धघ्रफराणी व्यावत्तिरेते फलदों ब्यवन्था चनती है तो बजाय ऐसा साकनेक्रे यदि यह कह दि जाय कि प्रमाणकी व्याठ त में ध्प्रमोरा बी च्यवरथा बनती है घौर फलोकी स्गाव त्तिसे प्रफलनी व्यवस्था चनटी हं तोयह भी क्यों न सही हो जाय रे निष्कर्ष यह है कि व्याध्तिक द्वारा स्‍्स्तुत्ती व्यवस्था नहीं घडित की था सकती है इस शरण परमाधिक प्रमाण श्रौर फल प्रहीमि सिद्ध मानना ही चाहिए प्रोर उन्हें कपचित भिक्न समभना चाहिए । फ्मोकि फयचितत भिन्न माने घिना प्रमाण प्रोर फलकी व्यवस्था नहीं दन सकती है | प्रमाणफल विधरक परिच्छेद--इस परिच्छेदमे प्रमाण।कि फलका दणुंन किया गया है । प्रमाण के फल हैं चार- धज्ञानन्ख्िति हानि, उपादान, शरीर उपेक्षा, ये घारोके ही चारों कथचितु प्रमारासे शिश् हैं, क्थथितु प्रमाणसे ध्रमिन्न हैं। फिर मी तुलनात्मक दृष्टिसे भ्रज्ञाननिदत्ति में प्रमाणासे प्रभिन्नदाका विदोर विधेष चलता है ध्रीर हानि उपादान उपेक्षामें प्रमाणसे शिप्तताका जिघार विक्षेप चलता है उसका कारण यह है कि घजाननिद्त्ति तो है प्रमाणाप तुरन्त साक्ातू होने बला फल धौर हानि उपादान उपेक्षा थे होते हैं भ्रज्ञाननिदत्तिरुप फन प्राप्त होतेके पदचातु । इस कारण जो सापात्‌ है उसे घ्रमिप्न कहा है प्रौर जो ध्ययघान सहिन है उसे भिन्न कहा है । श्रव इस समय प्रमाण सख्य विपर मौर फन ये चार वोतें भव हक इस फ्रन्य में निरूपितकी हैं, उनसे घिपरीत भ्रामासकें सम्बन्धमें निरूग्ण चलेगा । पहिले बताया था कि प्रमाण फ्या है तो प्रव बताबेंगें कि प्रमाशामाम क्या है ? पह़िले कट्दा था फि सस्या क्या है । श्रव वतावेगे कि सरय्यमाय कया है । पहले दिपय बताया गया था | अब घतायेंगे विपयामास 1 ध्रभी फल बताया गया, प्रव चतायेंगे फलाभास ! एस निरूपणके लिए निर्देशक सूत्र कहते हैं । (पप्ठ परिच्छद ) ततोजन्वत्तदासाससु ॥ इन 0 श्राभासोका निर्देश - जो पहिले प्रमाण, सरया, बिपय, फल बताये गए हूं उनसे भिप्न जो पुछ है थड़ तद'नास है । ध्र्णन प्रमाण मास स्यामास, विपयामास शोर फलामास । जिस प्रकोरसे प्रमाराशा धर्णशन दिया गया है स्व भौर भरपूर भर्थका घ्पयसायाह्मक श्ञान प्रमाण होता है प्रथ इस लक्षणसे हटा हुपा विपरोघ था शभ्रन्य प्रकारके सक्षण बिए जायेंगे ये शय प्रमाण भास कहलाते हिं। सरपा थो छुछ प्रमाण की यतोयों गई है उससे विपरीत होनाधिइरपरों जी थी सटया चतायी जापगी घट है संरगभास । विपय 'कट्टो ्पवा अमेय सूटो, उसरा स्वरूप प्रो चतापा शी गया था




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