भाषा - विज्ञान पर भाषण | Bhasha Vigyan Par Bhashan

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Bhasha Vigyan Par Bhashan by एफ॰ मैक्स मूलर - F. Maiks Mular

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के... ०0०८० रकशशशरशटनसएएएलएसफसपफानटए्रसएनपटममगररसकरकाक शराएएएएसवराफएससशलएस सफफिणलससससटटफकरएएलपसरट' - ः -५ भ द नलकलतपाफा कान लकपपएन०० ह ः क इाबाक५० झा कान अन्य विज्ञानों के समान भाषा का भी विज्ञान है ११. कीमियागिरी तथा फलिंत ज्योतिष की दया को पहुंच जायेँगे। अब तक मिस्र का यह विज्ञान (कीमियागिरी) अपने रहस्यमय नुसखों से बिचारे रोगियों को भला होने की आशा देकर उत्तेजित करता रहा (यहाँ मैं प्रसंगवद्य, पाठकों को बताऊंगा कि प्रसिद्ध फ्रेंच वैज्ञानिक शाम्पोलिओं ने हमारे डाक्टरों के विचित्र नुसखों का पता लगाते-लगाते सिद्ध किया है कि इनके रहस्यमय अस्पष्ट संकेत मिस्र की पाँच हजार वरष॑ पुरानी असली पुरोहिती (फाफल०ट्टाप्फ़मंट) लिपि _ तक पहुंचते हैं।)* और जब तक इस कीसियागिरी ने सोने का आविष्कार करने की आशा से अपने संरक्षकों अर्थात्‌ हिमायतियों के लालच की भावना पर सान चढ़ाने का काम किया, तब तक यह राजा-महाराजों के दरबारों तथा ईसाई सठों के भीतर दिन दूनी रात चौगुनी पनपी। यद्यपि कीमियागिरी ने सोने का आविष्कार न किया छेकिन इसने उन आविष्कारों का मागें प्रद्यस्त कर दिया जो अधिक मूल्यवान्‌ थे। यहीं बात फलित ज्योतिष के बारे में भी कही जा सकती है। फलित ज्योतिष उतना घोखा-घड़ी का काम नहीं था जितना साघधारणतः समझा जाता है। यह मेलानुक्थौन जैसे गंभीर और स्वस्थ दिमाग के विद्वान द्वारा विज्ञान . माना गया है और स्वयं बेकन इसे विज्ञानों में स्थान देता है; भले ही उसने यह भी कहा है--“इस विज्ञान का अधिक संबंध मनुष्य की कल्पना के साथ रहा है, विचार- . दाक्ति के साथ कम।' लूथर द्वारा फलित ज्योतिष का घोर तिरस्कार और निदा किये जाने पर०भी, यूरोप के भाग्य का निपटारा इसी ज्योतिष द्वारा होता रहा; और लूथर के सौ साल बाद फलित ज्योतिषी राजा-महाराजों और सेनापतियों के मंत्री और सचिव बन गये। तमादझा देखिए कि गणित ज्योतिष की नींव डालनेवाला घोर दरिद्रता और निराशा में सरा। हमारे समय में फलित ज्योतिष का नामो- निशान सिटने पर है।* असली और उपयोगी कलाएँ, जब वे काम की नहीं रहतीं, १. बनसेन कृत 8४70 खंड चार प० १०८। २. नोट्स ऐंड क्वेरीज़ (९०६८४ #एतं (पटल, 296 86संडड ४0. रू फ«' 500) के अनुसार फलित-ज्योतिष का पुर्णतया लोप नहीं हो गया है, जेसा कि अपना विचार है। वह लिखता है--इस समय हमारे एक बहुत बड़े बेरिस्टर तथा पुरा- . तत्त्व की शोध करनेवाली कई संस्थाओं के सदस्य देवज्ञ या फलित-ज्योतिषी हैं। किंतु कोई भी अपने इस ज्ञान का नाम सात्र विज्ञापन नहीं करता। इसका कारण




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