श्री परमात्म मार्ग दर्शक | Shri Parmatma Marga Darshak

Shri Parmatma Marga Darshak by श्री अमोलक ऋषि - Shri Amolak Rishi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इ0 8 हरे में सदर कक हरे मदद कहर केस हिरक मे उद्ध के कफ के न का 7 यार क काना ९ सडकेश ली इस ग्रंथके कत्तांका संश्चिप्त जीवन चरित्र. माखाड देशके मेढते शहरके रहीस, मदरमागी बड़े साथ ओसवाठ सिदीया गोतके, भाइ कस्व॒स्वंदजी व्यापार निमित्ते मालवांके क आसटे ग्राम आ रदेये, उनका अकरमात्‌ आयुष्य प्रण होनेसे उन- है ए कीसुपत्नी जवारावाइन वैराग्य पाकर ९४ पुत्राकी छोड़ साधमार्गी जे रन एंयमें दीक्षा ठी, और १८ वर्ष तक संयम पाला. मातापिता व पके त्नी के वियोगकी उदासी से शेट केवलचंदजी भोपाल शहरमें अ. £ रहे, और पिताके धर्मावुसार मंदीमःगीयोंके पंच प्रतिक्रमण, नव सम है रण, पूजा आदि कंगग्र किये. उस वक्त श्री इंवरजी ऋषिजी महा- हू है राज भोपाठ पधारे, उनका व्याख्यान खुननेको भाइ झूलचेदजी था- हीवाल केवलचेदजीको जवरदस्तीसे छे गये. महाराज श्रीने खुयग डोंगजी सूत्रके चढ़ उददेशकी दशभी गाथाका अब समझाया. जि डुससे उनको व्याख्यान प्रतिदिन छुननेयी इच्छा हुई. शनेः दानेः प्र & के तिकमण. पच्चीस वोलका थोक इत्यादि अभ्यास करते २ दिल्ला ढे एऐनेका भाव हो गया. परंतू भोगावली कमेंके जोरसे उनके मित्रोंने ज कर के बरदस्तीसे हुछासावाइके साथ उनका लम कर दिया. दो पुत्रको छो कड वो भी आयुष्य पूर्ण कर गह. पुत्र पाना, सम्बन्वीयोंकी प्रेर 2) डणासे तीसरी वक्त व्याव करनेके लिये मारवाड जाते, रस्तेमें प्रज्य श्री !! उदेसागरजी महाराजके दर्शन करनेको रतलाम उतरे, वहां बहुत शा 5 सके जाण, भर यूवानीमें सजोड शीठब्त धारण करनेवाले भाइ क- डर रे स्तुरचंजी ठसोड केवलबंदजीको मिले. वो उनको कहने छठे कि, ' वि- डपका प्याठा सइज ही गिरगया, तो पुनः उस | देके 9 रेड कक हेड के स्डककलडककल्डस्करडसससड बन कर | व लू? हद; सम का च्यान्कनणाण का का पा हर वि का शक फवलडक के दी ही




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