योगसार टीका | Yogasaar Teeka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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योगसार टीका । एप्स नया जनपद उेन्य्य __5-नफयी- (रे रन, स्प्य्य्दाग दोहा ) ज्ञान दही सुख वीयमय, परमातम खद्ारीर। अहेत दक्ता आप्त नम, पढुचू भवदघितीर ॥ १॥ सिद्ध शुद्ध अद्ारीर प्रभु, वीतरग विज्ञान । नित्य मगन निज रूपमें, बंदई सुखकी खान ॥२॥ आचारज मुनिराजवर, दीक्षा दिक्षा देत। शिव-मग नेता शांतिमय, बंद भाव समेत ॥ ३॥ शरुतघर गुणघर 'घमंघर उपाध्याय हत भार । ज्ञान दान कर्तार मुनि, नमहठ सखमासत धार ॥ ४॥ साधत निज आतम सदा लीन ध्यानमें धीर । साधु अमट्लल दूर कर, हरहु सकल भव पीर ॥५॥ जिनवाणी सुखदायनी; सार तत्वकी खान । पढत घारणा करत ही, होय पापकी हान ॥ ६॥ योगिचन्द्र मुनिराज छत, योगसार सतु श्रन्थ । भाषाम टीका लिखूं, चलूं स्वानुभव पन्थ ॥ ७॥ ( अ० सीतर, ता० १ ३-रे-२९० )




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