योगसार टीका | Yogasaar Teeka
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
396
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)योगसार टीका ।
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जनपद उेन्य्य
__5-नफयी- (रे रन,
स्प्य्य्दाग
दोहा )
ज्ञान दही सुख वीयमय, परमातम खद्ारीर।
अहेत दक्ता आप्त नम, पढुचू भवदघितीर ॥ १॥
सिद्ध शुद्ध अद्ारीर प्रभु, वीतरग विज्ञान ।
नित्य मगन निज रूपमें, बंदई सुखकी खान ॥२॥
आचारज मुनिराजवर, दीक्षा दिक्षा देत।
शिव-मग नेता शांतिमय, बंद भाव समेत ॥ ३॥
शरुतघर गुणघर 'घमंघर उपाध्याय हत भार ।
ज्ञान दान कर्तार मुनि, नमहठ सखमासत धार ॥ ४॥
साधत निज आतम सदा लीन ध्यानमें धीर ।
साधु अमट्लल दूर कर, हरहु सकल भव पीर ॥५॥
जिनवाणी सुखदायनी; सार तत्वकी खान ।
पढत घारणा करत ही, होय पापकी हान ॥ ६॥
योगिचन्द्र मुनिराज छत, योगसार सतु श्रन्थ ।
भाषाम टीका लिखूं, चलूं स्वानुभव पन्थ ॥ ७॥
( अ० सीतर, ता० १ ३-रे-२९० )
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