जैनबालबोधक भाग - 3 | Jainbalabodhak Bhag - 3
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
262
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तृतीय भाग । श्र
४. सत व्यसन ।
व्यसन नाम किसी विषयमें अहदोरात्र मम ( लवली न )-
रहनेका है । मम भी ऐसा रहै जिलका दूसरे दिपयोंकी
तरफ ध्यान ही न रहे । इस मकारसे यदि खोटे कार्योंमें
मर्न रहै तो उन्हे कुव्यसन कहते हैं । परंतु श्रच्छे: कारयोंमें
झाजकल बहुत कम लवलीन दोते हैं इत कारण प्रचलित
भाषामें कुव्पसनकों व्यसन दथब्दसेददी उच्चारण करते वा
समकते हैं । ऐसे झुव्पसन सात हैं । नेसे, जूआ खेठना १,
मांप्र खाना २, मदिरा पान करना ३, शिकार खेलना ४,.
वेश्या गपन £, परखी सेवन ६, ओर चोरी करना ७, ये
सात व्यसन / झंव्यसन ) हैं ।
१। रुपये पैसे और कोडियों वगेरहसे मूठ खेठना
तथा हार जीत पर दृष्टि रखते हुये दात्त लगाकर कोई भी.
काम ऋरना अफोमके नीलामक्रे घांक पर सत्ते लगाना व
रुपये रखना सो जूता कइलाता है। जूआ. खेडनेब्राठेको
. जुबारी कहते हैं । जुबारी लोगोंका कोई विश्वाप्त नहि
करता क्योंकि जूएमें हार दोनेसे चोरों वेईमानी करनी
पढ़ती है। जुन्ारीका सच जगद अपमान दोता है । जातिके
लोग उसकी निंदा करते हैं घर राजा दैड देता है । तास
गजफा खेलना भी जूएमें समभकना चाहिये ।
. २। जगम [ तरस ] जीवोंको मारकर अथवा मरे हुपे
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