जैनबालबोधक भाग - 3 | Jainbalabodhak Bhag - 3

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Jainbalabodhak Bhag - 3  by श्रीलाल जैन - Srilal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तृतीय भाग । श्र ४. सत व्यसन । व्यसन नाम किसी विषयमें अहदोरात्र मम ( लवली न )- रहनेका है । मम भी ऐसा रहै जिलका दूसरे दिपयोंकी तरफ ध्यान ही न रहे । इस मकारसे यदि खोटे कार्योंमें मर्न रहै तो उन्हे कुव्यसन कहते हैं । परंतु श्रच्छे: कारयोंमें झाजकल बहुत कम लवलीन दोते हैं इत कारण प्रचलित भाषामें कुव्पसनकों व्यसन दथब्दसेददी उच्चारण करते वा समकते हैं । ऐसे झुव्पसन सात हैं । नेसे, जूआ खेठना १, मांप्र खाना २, मदिरा पान करना ३, शिकार खेलना ४,. वेश्या गपन £, परखी सेवन ६, ओर चोरी करना ७, ये सात व्यसन / झंव्यसन ) हैं । १। रुपये पैसे और कोडियों वगेरहसे मूठ खेठना तथा हार जीत पर दृष्टि रखते हुये दात्त लगाकर कोई भी. काम ऋरना अफोमके नीलामक्रे घांक पर सत्ते लगाना व रुपये रखना सो जूता कइलाता है। जूआ. खेडनेब्राठेको . जुबारी कहते हैं । जुबारी लोगोंका कोई विश्वाप्त नहि करता क्योंकि जूएमें हार दोनेसे चोरों वेईमानी करनी पढ़ती है। जुन्ारीका सच जगद अपमान दोता है । जातिके लोग उसकी निंदा करते हैं घर राजा दैड देता है । तास गजफा खेलना भी जूएमें समभकना चाहिये । . २। जगम [ तरस ] जीवोंको मारकर अथवा मरे हुपे




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