जीन ज्ञान प्रकाश | Jeen Gyaan Prakash

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Jeen Gyaan Prakash by मुकुंद्चंद जशकरण चिन्डालिया -Mukundchand Jashkaran Chindaliya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( है ) ॥ दोहा ॥ 'अझंजना सती तिण अवसरे, वेठी सामायिक सांय । कर्म घर्म संभालती, रही घर्म लव लय्ाय ॥ बसंतमाला तिण अवसरे, हाथ जोड़ौ कड़े आम । सती रे सामायिक तिहां लगे, राजा करो विश्राम ॥१॥ ॥ ढाठ तेहिज देशी ॥ हिवे अंजना सामायिक पूरी करो, हाथ जोड़ी लागे पिउ ने पायक । पवनजौ कड़े तू' सोटोौ सती, लौन रही शौजिन घम मांहिक ॥ वचन वरां से मै' टूचवी, मैं' तने कौघो अभाव अगाधक । हाथ जोड़ी करू' विनती, खमज्यों सती स्हारो अपराधक ॥ स० ॥ ४२ ॥ अंजना पाय नमी कहै, एहवा बाल बाला कांड स्वामक । जहवी प्रग तयो साजड़ौ, तेहवी पुरुषने स्त्री जायक ॥ हाथ जोड़ी ने आय उभीौ रही; सधुर सुह्ा- मगा बोलती वेणक ।. कहे प्राप्ति विण किम पामिये, जाणे पत्थर गाली ने कौधो छे मैगाक ॥ स० ॥ 8३ पे तौन दिवस रह्मा तिहां पवनजौ, तिह्ां भाव भगति तियण कौप्नी विशेषक। वाय ठोले बौंकने करी, षटरस भोजन आपिया अनेकक ॥ 'हाव भाव करे छे अ'जना, प्रौतम सू' घणौ सांचवी रौतक । पवनजी आनन्द पास्या




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