आदिकालीन हिंदी रासो काव्य परम्परा में प्रतिविम्बित भारतीय संस्कृति | Adi Kalin Hindi Raso Kavaya Parampara Mein Prativimbit Bhartia Sanskriti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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14 चिषायन्प्रवेश तथा शोधकार्य की सौलिकता ( चिदय- चविवरतणिका ) प्रकाशिस स्व अप्रकाशित सहम्राधिक रासो काव्य; आदिकाठीन लगमग पेंसालीस हिन्दी रासो काव्य, रासो काथ्यकृतियों का क़मिक खविकास-- रिरपुवारण- रास सस्कृत, सवत ६६२), सुकुटसप्तपी रास, माणि क्यप्रस्ता रिका रास, ऑम्बकादेवी रास, तथा अम्तरंग रास( बसवों शतों? , उपबेशरसायमरास (उपलब्ध प्राचीनतम रासो' काव्य); सनेह-रासय (साथ काव्य,१२ वी श्तों? , उम्मीसबी शताब्दी तक सातल्य; रासो रचनाजों के पाच वर्ग-- था ्मिक , आध्यात्मिक, नैतिक, लौ किक प्रेमपरक तथा ४ तिवुत्तास्मक; रासोका व्य-शेछो , स्कथ्ष, सोपान, सम्प्रदाय, लिथय और माषा आह डॉष्टियो से विभाज्य; रासो काव्यों में प्राणतत्व, रुपतत्व और स्वर तत्व; शोधकार्य के क्यूय और तथुय का अनुक़म-- विकासवादी प्रक्रिया मुखक प्रस्तुती करण; रासोंका व्य-- संस्कृति स्व सम्यता के ज्ञानकोश; सामस्ती संस्कृति और ठोक सस्कृति के माण्डागाए; संस्कृति का अर्थ; मारतीय सस्कृति का सात्पर्य; मारतीय संस्कृति की सीमाएं; मारतीय सस्वृत्ति के प्रदुख उपादाम, तत्काछीन रासो काव्यों में मारतीय सस्कृति के समस्त अवयव; इस्ठामिक मान्यताओं की आयृत्ति, जैन दार्शनिक सस्यृति का समावेश; आठछोच्यकाछीन सस्कृति का पा ्इिस्यिक आमिव्यजम; प्रस्तुत प्रबन्व की सौजिकता; अधावधि सम्पस्न सास्कृततिक अदुसन्वानों का सर्वेशणणा तथा विनय की नवीमता। प्रबस्थ- प्रस्तुली करण : 'विकासवादी 'सिदास्ताबा रत; महापडित राइुक साकृत्पायन से 'बिचार-बैमिस्थय; हस्टािक मास्यतावों का मारत मै सारसीयकरण जाति, बी और बर्मावाित सघलर्त का अमाव, रासो काल्यों मे प्रवशित




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