बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के सन्दर्भ में उदारीकरण नीति की उपादेयता | Bahurashtreey Kampaniyon Ke Sandarbh Men Udarikaran Neeti Ki Upadeyata
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
292
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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क्रम सिन्ध के विषय मे भी प्रत्यक्ष देखने को मिला!*
सक्षेप मे यह कहा जा सकता है कि 1947 ई० से पूर्व भारत अंग्रजो के अधीन था। ईस्ट
इण्डिया कम्पनी के आगमन से पूर्व भारत की आर्थिक स्थिति काफी सुदृढ़ थी। इस बात की पुष्टि
ऐतिहासिक साक्ष्यो से भी होती है। ईस्ट इण्डिया कम्पनी का आरम्भिक स्वरूप व्यापारिक था, किन्तु
बाद मे इसने भारत मे सत्ता स्थापित कर ली और “सत्ता व्यापार का अनुसरण करती है' की कहावत
को चरितार्थ कर दिया। ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था के समस्त साधनो, उद्योगों एव
कृषि का इस निर्ममता के साथ शोषण किया गया कि भारतीय अर्थव्यवस्था का दम निकल गया।
अदक्ष कृषि प्रणाली और भूमि के असमान वितरण ने कृषि को मात्र जीविका का साधन बनाकर रख
दिया। लघु एव कुटीर उद्योग ता प्राय नष्ट हो चके थे और जो कुछ औद्योगिक इकाइयों जीवित रह
भी गई थीं, वे मात्र उपभोक्ता वस्तुओ के उत्पादन तक ही सीमित रह गई थी। इस प्रकार देश के
आर्थिक विकास के लिये आधारिक सरचना का आभाव प्रत्येक रूप से परिलक्षित था।
समय के परिवर्तन के साथ अत्यन्त विषम आर्थिक परिस्थितियों में भारत को राजनीतिक
स्वतत्रता प्राप्त हुई। 1947 ई० मे जब भारत का नवोदय हुआ उस समय भारत को अधिकांश निर्मित
वस्तुओ का आयात करना पड रहा था। स्वतत्रता से वर्तमान समय तक भारतीय अर्थव्यवस्था चार
दसको से अधिक का समय व्यतीत कर चुकी है। इस चार दसकों में अर्थव्यवस्था में अनेक प्रकार के
परिवर्तन हुए तथा अर्थव्यवस्था को विकसित करने के लिये अनेकानेक प्रयास भी किये गये। भारतीय
अर्थव्यवस्था के विकास हेतु योजनाबद्ध प्रयास सर्वाधिक महत्वपूर्ण और क्रातिकारी कदम है। अप्रैल
1951 मे प्रथम पंचवर्षीय योजना का श्रीगणेश किया गया। 1947 से लेकर 1950 तक की अवधि
अनियोजित विकास की अवधि रही है। जिस समय भारतीय अर्थव्यवस्था को ब्रिटिश शासकों से मुक्ति
मिली उस मसय उसकी स्थिति एक साफ स्लेट की भांति नहीं थी, जिस पर स्पष्ट कुछ लिखा जा
सके। दूसरे शब्दों में, भारतीय अर्थव्यवस्था इतनी जर्जर स्थिति को प्राप्त कर चुकी थी कि कोई भी
योजना बनाकर उसे पूर्णरूप से सफल बनाना लगभग असंभव सा दिखाई पड रहा था। ब्रिटिश
शासको ने अर्थव्यवस्था पर इतना अधिक दबाव बना दिया था कि उससे विकास की सभी संभावनायें
समाप्त सी दिखाई देने लगी थीं। वह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत को
अंग्रेजी माल की बिक्री का बाजार बना दिया गया था। अंग्रेज वहाँ से कच्चा माल खाद्यान्न तथा अन्य
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