सूरतें और सीरतें | Suraten Aur Seeraten

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Suraten Aur Seeraten by प्रो. कपिल - Pro. Kapil

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गोसाई' बाबू यों तो लोग उन्हें गोसाह बानू हो कहते हैं, किन्तु नाम फुछ झौर ही है। पर उनका गोसाई बाबू सास ही क्‍यों है ? शायद इनकी बेशनभूपा, ाचार-व्यव्टार, रदम-सहन, चाल-हान तथा बातचीत के कारश थही झधिक उपयुक्त जैबता है। फिर भी, कुछ पोग एन्हें रामदास, तो कुझ छीपी झादि भी कह कर पुकारा करते मैं। साफ धोत्ती, साफ कुर्ता, साफ गमछी तथा पंपशू उनफे शरीर के श्ाभूपरा हैं। माथे के फेश कुड-कुछ उड़ चुके हैं, फिर भी, कंधी उसमें नित्य पढ़ती है; लज्नाद पर शामानन्दी चन्दन का शगार दोनों शाम मिये- मित रूप से देखने को सिलता है--यही हैं गोसाई बादू ! गोसाई बाचू, झपने बचपन में घर के सारे शाइं-प्यार के झाधिं कारी थे, दुज्ारू बाबू थे; फिर भी पढ़ने-लिखनें की जन्मजात प्रहति उन्हें भगवान को छोर से ही मिली थी ! श्ाज भी वे लिखते तो हैं शॉयद मन्तदूरों का दिसाव झाधवा समयन्समय पर छुदुर्थियों को पत्र ही, पर पढ़ते बहुत हैं--सुखसागर, भक्तमाज्, गीता; सानसें,




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