सामर्थ्य समृद्धि और शान्ति | Samarthya,samridhi Aur Shanti

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Samarthya,samridhi Aur Shanti by ओरिसन स्वेट मार्डेनकी - Orisan Svet Mardenaki

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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, झारीर ओर सन | मनमे इसी प्रभायदाटी आवश्यकताकी महागक्तिके विलक्षण बल्के कारण, इस प्रकारका छुद्र विकार, क्षणभर भी नहीं ठहर सकता | अमेरिकाके सान्‌ फ्रान्सिसकों नगरमे एक बार बहुत बडा भूकम्प आया था, जिसके कारण वहों वहत कुछ हानि और नाण हुआ था। उस समय वहाँ एक ऐसा आदमी था जो पन्द्रर व्पोंसे वीमार पडा हुआ था । पर उस भूकम्पके भयानक घढेका उस वीमारपर ऐसा प्रभाव पडा कि बह चटपट उठकर चढने फिरने ठगा । उस समय उक्त नगरमे उसी प्रकारकी और भी अनेक विलक्षण घटनाएं हु* थी । इस समय वहँँ। और मी बतसी ऐसी स्त्रिय। आर पुर्प थे. जे। चरसोसे नीमार पढ़े रए थे आर चल णिर नहीं सयाते ये । बल्कि तत्त से योग तो ऐसे ये जो पदत उड़ उयोग करने पर भी जरासा उठयार सर भी नहा हो सयते थे । जब अचानक, बा सयानय, मूया पे लाया सब मानें उन सानिम फिसी जप सर लद्रत कनिका संचार हा तप । ये लोग चढपट इठ सेट एए रगेर अपन «स्पेस गए पा का औोइस उठा यार परसें पार निया पर । आकर जी यो या १ प्यार अपने पपरफा सार सामान फिर सर्व सवावकि पे यागे पर नी सरापें 1, लार नी सनक अं जे. चाप जज हे री गुर मी लेने रदरण पाल 1 जा पे गवकर जी | ज १ न हि का बनना कन्या पक ्अ हे हि ते | मे, पर सजा, रा1 वे जा जॉर् ह 1 ! वि के ता. हू का द थक क् 4 पर एप वि नव हो तन हे ० मी. 2३८: दा रण लि लक 3 है के दर्ज गग री जनक नी. सोफिय ;+ ये री 1, दर नल न 4 है पे कि के के री. पे पिन कर दर ्ौ बत्ये पे, है ₹ है यो जाप अं, हंस




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