श्री जवाहर किरणावली भाग 7 | Shri Jawahar Kirnawali Bhag 7

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Shri Jawahar Kirnawali Bhag 7  by सुमतिलाल बांठिया - Sumatilal Banthiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शय्यभव आचार्य के ससार-पक्ष के पुत्र का नाम मणिकपुत्र था। मणिकपुत्र के कालधर्म पाने पर शय्यमव आचार्य को कुछ खेद हुआ। यह देखकर साधुओ ने उनसे पूछा-'महाराज! जब अन्य मुनि कालधर्म पाते हैं तब आपको इतना खेद नही होता, फिर इस शिष्य के वियोग से इतना खेद क्यो हो रहा हैं” आचार्य ने साधुओ से कहा-'यह शिष्य मेरा अगजात ही था ।' यह सुनकर साधुओ ने कहा-'आपने हम लोगो को पहले यह बात क्यो नहीं बतलाई?' आचार्य बोले-'अगर यह बात तुम्हे पहले बता दी होती तो तुम उसे लाड लडाते और उसको आत्म-कल्याण मे बाधा उपस्थित होती। उसकी आयु छह महीना शेष है, यह बात मुझे मालूम हो गई थी। इस अल्पकाल मे ही वह आत्मकल्याण कर सके, इस उद्देश्य से मैने पूर्व अगो मे से उदृघृत करके दर्शवैकालिकसूत्र की रचना की थी। अब वह कालधर्म पा चुका है, अत इस सूत्र को जिस शास्त्रसागर से सकलित किया गया है, उसी मे फिर मिलाये देता हू। इस कथानक से विदित होता है कि शय्यभव आचार्य की इच्छा द्शवैकालिक सूत्र को सूत्रों मे ही मिला देने की थी, मगर उस समय का सघ सगठित था। सघ ने आचार्य से प्रार्थना की-'भगवन्‌ । वह शिष्य आपका पुत्र था तो क्या यह सघ आपका पुत्ररूप नहीं है ? काल धीरे-धीरे विषम होता जा रहा है और विषमकाल मे विशाल और गम्भीर सूतो का अध्ययन करना अत्यन्त कठिन हो जाता है। अतएव आत्मार्थी भद्रपुरुषो के लिए यह सूत्र अतीय उपकारक होगा। अनुय्रह कर इसे इसी रूप में रहने दीजिए |' शय्यमभव आचार्य ने कहा-'इस सूत्र मे जो भी कुछ है, भगवान्‌ की हो वाणी है। इसमे मेरा अपना कुछ भी नहीं है इस प्रकार कहकर उन्होने दशवकालिफसूत्र स्थविरो के समक्ष रख दिया। सूत्र देखकर स्थविरो ने उसे दहुत पसन्द किया और फिर तो उसने आचाराग का स्थान ग्रहण कर लिया। पहले पहल यही सूत्र पढाया जाने लगा | पानी मे किसी प्रकार का भेद नहीं होता। जिनवाणी के विषय मे भी पर दत है | जिनयाणी भी सबके लिए समान हे। पानी चाहे तालाब मे हो यह सूप मे हो आता सब एक ही जगह से है, अर्थात वर्षा होने पर ही सब २ 1४ फरच्ता है। इसलिए पानी में किसी प्रकार का भेद नही होता | परन्तु हक हा लि पाए से पानी का घडा भर लाते हैं तो उसमे अहकार ही पी सन रो जाता है । यह पानी मेरा है यह तेरा है इस प्रकार का भेदभाव उत्पप ए पशद पु पा पर | एरम्त दास्तद भें पानी कफ भी भेद नहीं प्रकृति हक कं गम गी होता हरि का कि ऋ अुन्स» ६९. कि शच्जरस्वएच्नाएउक न -- -- --« सम्पस्दपराम्रण भाग १-२ 4




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