नित्य कर्म | Nitya Kram
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
223
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)७
सेवाने प्रतिकृव्ठ जे, ते बंधन नथी त्याग;
देदंद्रिय माने नहि, करे वाह पर राग.
तुज वियोग स्फुरतो नथी, वचन नयन यम नांहि;
नहि उदास अनभक्तथी, तेम यद्दादिक मांदहिं-
अहभावथी रहित नहि, स्वघम संचय चांहि;
नथी निवृत्ति नि्मेठपणे, अन्य धमेनी का.
जेम अनेत प्रकारथी, साधन रहित इंय;
नहीं श्रेक सदूगुण पण, सुख बताओ शुय ?
केवछ करुणा-मूर्ति छो, दीनर्बंधु दीननाथ;
पापी परम अनाथ छुं; श्रह्ो प्रभुजी हाथ.
अनंत का्थी आधथड्यो; बिना भान भगवान;
सेव्या नहिं गुरु संतने, मृक्युं नहिं अभिमान,
संतचरण आश्रय बिना, साधन क्यों अनेक;
पार न तेथी पामियो, उग्यो न अंदा घिवेक.
सह साधन वेंघन थयां, रहो न कोई उपाय;
सत्स।घन समज्यों नहि, त्यां वंघन शुं जाय ?
प्रभु प्रमु लय ठागी नहि, पड्यो न सदूयुरु पाय;
दीठा नहि निज दोष तो, तरीखे कोण उपाय?
अघमाधम अधिको पतित, सकव्ठ जगतमां इंय;
मे निश्चय आव्या बिना, साधन करदे शुय ?
पडी पडी छुज पद्पंकजे, फरि फरि मायुं भेज;
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सदूगुरु संत स्वरूप तुज, भे द्रढता करी देज. २०
श्रीमदू राजचद्र
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