वीतराग विज्ञान प्रशिक्षण निर्देशिका | Vitarag Vigyan Prashikshan Nirdeshika

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Vitarag Vigyan Prashikshan Nirdeshika by प॰ हुकमचन्द भारिल्ल - P. Hukamchand Bharill

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४ ) उपरोक्त पारिभाषिक शब्दों का विश्लेषण व उनके विशेष निर्देशों को स्पष्टतया समभ लेना झ्रावश्यक है। इनका विशेष स्पष्टीकरण निम्नानुसार है :- १. पाठ-योजना पढाये जाने वाले पाठ की श्रध्यापन व श्रध्ययन की दृष्टि से विस्तृत योजना बनाना श्रत्यावश्यक है । इसे पाठ-योजना कहते है । २८ प्रकरण पाठ के जिस झ्रण काज्ञान छात्रों को देना हो उसे प्रकरण कहते है । प्राय पाठ के ही नाम को प्रकरण समभ लिया जाता है । पाठ का नाम भी प्रकरण हो सकता है पर सुक्ष्मता से विचार करने पर विस्तृत सीमा को लिये हुये पाठ के श्रन्तगंत कई प्रकरण हो सकते है । उदाहरणतः 'कषाय' वाले पाठ मे यदि एक दिन मे “क्रोध और मान' ही पढ़ाना हो तो प्रकरण “क्रोध श्र मान कषाय' दिया जाना चाहिए । ३. उद्देश्य प्रत्येक कार्य के पीछे एक लक्ष्य (उद्देश्य) होता है। यहाँ हम उद्देश्य को दो भागों मे विभाजित कर सकते है - (क) सामान्य उद्देश्य (ख) विशेष उद्देश्य (क) सामान्य उद्देश्य - सामान्य उद्देश्य सब पाठों मे समान रूप से पाये जाते है । (ख) विशेष उद्देश्य - विशेष उद्देश्य पाठ-विशेष से सबघित होते है । ये तात्कालिक पादूयवस्तु के अनुसार निर्धारित किये जाते है । '४- उद्देश्य कथन छात्रो को पढाना प्रारम्भ करने के पूर्व यदि पाठ का उद्देश्य बता दिया जाय तो वे उसे झधिक रुचिपूर्वक पढते है । भरत: पाठ प्रारम्भ करने के पूर्व उद्देश्य अवश्य बता देना चाहिये। इसको ही उद्देश्य कथन कहते है । उद्देश्य कथन सरल, संक्षिप्त और रोचक होना चाहिए ।




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