जीवनोपयोगी बातें | Jivanopyogi Baten

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Jivanopyogi Baten by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अध्याय । श्७ कनभरथाधशथाभााा नाननाानअपपाजपाधजजजजजददऊददजदद ओर छोने में,सल्ना को पास न फटकने दो । तब तुम खप्रतिष्ठा थे योग्य हो सकते हो। ' श४-्याय। ,.. यदि तुम उदार बनने के इच्छुक दो, तो पदिली स्यासी बनो। किसी कौ तुम्हारे प्रति की इई दया अथवा अइसाल भूल जाना बचत बुरी बात है, और जो कि व्याय के बिलकुल ' विपरौत है। इस बात को भलो भाँति समक लो कि, दूसरों के धन से उदार बनना तो 'सछज है परन्तु अपने से नहीं । यदि हम किसौ के उपकार का बदला चुका दें तो इसमें व्याय अवश्य है, परन्तु उसे उदारता नहीं कह सकते । क्योंकि उदारता का अथ बिना बदला लेने कौ इच्छा के सहायता करना है। यदि दस उपकार ' का बदला नदें तो मनुष्य धर्स .से पतित इो जायेंगे । क्योंकि-- छते प्रत्युपकारोह्षि बणिग्धर्सी न साधुता । तत्रापि थे न कुवेन्ति पशवस्ते न सातुष: ॥ ',. अर्थातू--उपकार का बदला चुकाना ईसान्दारो है, न कि साप्चुता, और जो बदला भी नहीं चुकाते वे सजु्ध नहीं, पशु हैं। यदि तुम्हे जान पढ़े कि, तुम्हारे साथ अन्याय किया गया » तोभी उसका बदला न्याय से दो । यद्यपि तुम इस बात को समभक गये कि,तुम्हारे साथ भ्रन्याय किया गया,परन्तु इसका 'कोई कारण नहीं कि, तुम भी अन्याय करो । किसी से कह ले द्‌




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