प्रौढ़ रचनानुवाद कौमुदी | Praudh Rachnanuvad Kaumudi

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Praudh Rachnanuvad Kaumudi by कपिलदेव द्विवेदी - Kapildev Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न प्रौद-रचनाजुवादको सुदी ( नियम १-९ ) दाब्दकोप-२५ ] अभ्यास * ( व्याकरण ) ( क ) रामः (राम ); . पातोत्पातः _ ( उत्थान-पतन ); सद्दत्तः ( सदाचारी ); दुराचारः ( दुराचारी ); वैषेयः ( मूर्ख ); बुशुक्षितः ( भूखा ); मल ( पहलवान ) | (७.)।(ख) यू (होना ); अनुभू ( अनुगव करना 9, प्रथू ( १. निकलना, २. समर्थ होना, २. अधिकार होना, ४. बराबर होना, ५. समाना ); पराभू ( हराना ग परिभू ( तिरस्कृत करना ); अमिसू ( हराना, दबाना ); सम्यू ( उत्पन्न होना ); उद्भू (पैदा होना ), आविर्भू ( प्रकट होना );. तिरोसू ( छिप जाना ), प्रादुभू, ( जन्म लेना ); अहू ( योग्य होना ); परिहस्‌_ ( हँसी करना ); प्रलपू_ ( बकवाद करना ) । (१४)! ( ग) परमार्थतः ( सत्य, ठीक ); नाम ( निश्चय से)। (२)1(घ) मघुर्म ( मीठा ), तीन्रमू ( तेज ) । (२) व्याकरण ( राम, लटू , प्रथमा, द्वितीया ) १. राम शब्द के पूरे रूप स्मरण करो । ( देखो शब्द्रूप संख्या १ ) २. भू तथा हसू धाठुओं के रूप रंमरण करो । ( देखो धघातुरूप संख्या १; २ ) ३. भूं धाठ के उपसर्ग लगाने से हुए विशेष अं को स्मरण करो और उनका प्रयोग करो । नियम न कर्ता ( व्यक्तिनाम; वस्तुनाम आदि ) में प्रथमा होती टै और कर्मवाच्य में कर्म में प्रथमा होती है । जैसे--रामः पठति । अश्वो घावति । रामेण पाठः पय्चते | नियम २--किसी के अभिमुसीकरण तथा संमुखीकरण में ( सम्बोधन करने में ) सम्बोधन विभक्ति होती है । जैसे-हे राम, हे कृष्ण । निपम दे--( कर्तुरीप्सिततमं कमें ) ) कर्ता जिसको ( व्यक्ति, वस्तु या क्रिया को ) विद्योष रूप से चाहता है, उसे कर्म कहते हैं | लियस छ---( कर्मणि द्वितीया ) कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है । जैसे--स पुस्तकं पठति । स रामं पदयति । ते प्रदनं पच्छन्ति । विधम ४--( अभितःपरितःसमयानिकपाहा प्रतियोगे 5पि ) अभितः, परितः, समया, निकपा, दा और प्रति के साथ द्वितीया. होती है ।, जैते--चपम्‌ अमितः परितः वा | आमं समया निकपा वा ( गाँव के समीप ) । बुभुशितं न प्रतिभाति किंचित्‌ | निधस द--( उमसवंतप्ो! कार्या० ) उमप्रत,. स्वतः, _ घिक्‌,. उपयुपरि, अधोष्घ), अध्यधि के साथ द्वितीया होती है । जैसे -झष्णमुमग्रतो गोपा: । पं सर्वतो जनाः । पिंक नास्तिकम्‌ । नियम ७--यति ( चना, हिलना, जाना ) अर्थ की भातुओं के साथ द्वितीय होती है । गत्पर्थ का आलंकारिक प्रयोग होगा तो भी दितीया होगी | जैसे--रहं गच्छति । वन विचरति । तृर्ति ययो । मम स्मृति यातः । उमाख्यां जगाम । निद्रा ययो । लनियम्त ८--अकर्मक धघातुएँ उपसर्ग पहले लगने से प्रायः अर्थानुसार सकर्मक हो जाती हैं, उनके साथ द्वितीया होगी । जैसे--र्षमनुमवति । स खलमू अमिमवति 1 स झातुं परिमवति पराभवति वा । इक्षमारोहति । दिवमुत्पतति । स्वामिचित्तमनुवर्तते | नियम ९.स्टू घाठु के साथ साधारण स्मरण में द्वितीया शोती है । खेदपूर्वक स्मरण में पढ़ी होती है। जैसे -स पाठ समरति ( वह. पाठ याद कर ठ् करता डर मातुः रमरति | ( बालक खेद के साथ माता को स्मरण करता है ) । है ) | बाल




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