श्री भागवत दर्शन भागवती कथा भाग - 81 | Shri Bhagawat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 81
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
202
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गीता साहदात्म्य
(१७)
केवसेन हि भावेन गोप्यो गायों नगा सगाः |
येजन्ये मूढ घियो नागा। सिंद्धा मामीयुरक्ञसा ॥
य न योगेन सांख्येन दानव्रततपोउध्वरै: ।
ब्याख्यास्पाध्याय संन्या सै! ्राप्लुयादू यरनवानपि
(श्रीर भाग० है रक० १२ भ्० ८.६ इलो० )
छप्पय
सड़ग वाहु-सुत-भृत्य लगायी पर चढ़िय गज |
दीयों गज ने फेक मरयों गज सयो देह तजि ॥॥
विंहल में गज. मयो. सूप सॉराप्ट्र पठायो
तिनि करि कवि कू दान देश सालवहिं बिकायों ॥
उपर पीड़ित हाथी. मयो, करीं चिकित्सा बह सूपाते |
नहीं मगयो गज ज्यर रहित, व्यापी चिंता सपहि भति ॥।
अभगवान, श्री कृष्णचन्द्रजी कह रहे हैं--उद्धव | वेवल मुखमे
प्रेम भाव रखो वाली जो गोपियाँ, गेंयाँ बूझ्ष श्रौर हरिन हाथी
सर्पादि तथा भ्रन्य मूढ बुद्धि वाली जीव योनियाँ हैं उन सब ने सिद्धि
चारी है | बडे बडे प््नशील साधक जिस मुझे पीग, सार, दान, ब्रत,
सपस्या; यज्ञ, व्याख्या, स्वाध्याय झौर सन्यासादि साधनों द्वारा प्राप्त
सही कर सकते उसी मुभवों संसद्ध के द्वारा श्रत्यन्त सुलमता से प्राप्त
कर लेते हूँ ।
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